पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/६९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भारतर्फे प्राचीन राजवंशसं० १६० में ही त्रिप हो गया था, क्योंकि इस वर्षके इॐ माईके मी क्षत्रप उपाधैिवाले सिक्के मिले है । | यशोदामाके दानप उपार्थिवाले चाँदीकै सिकॉपर उड़ी सरफ “राज्ञों महाक्षतपस दामन पुत्रस राशः क्षत्रप पशाप्त ” और आँधी सरफ शः सं० १६० डिसा होता है। इसके महाक्षप उपाधवाळे सिझे मी मिळते हैं । इससे प्रकट होता है। कि दादव द्वारा छीनी गई अपनी वश-परपरागत महापकी उपाधि| को श० ऋ० १६१ में इसने फिरसे प्राप्त की थी। इस समयके इस सिक्का पर उलटी तरफ ** स महाक्षत्रपत अमरोनस पुत्रप्त शो महाक्षत्रपस यौदाद " और सीची तरफ शः ० १६१ लिया मिलता है । | विजयसेन । [ ० रा ० १६०-१५२ (ई• सु० २३८-३५०वि० सं० १५५-३•v}। यह दामनका पुन और पीरदाम तथा यशोदामाका भाई था । इसने भी शक-संचन् १६० के क्षत्रप उपाधेिवाले चाँदीके सि मिले हैं। इस सवतकें इसके पूर्वोक्त दोनों भाईयोंके मी अनप उपार्थिवाले सिके मिले हैं। विजयसेन इन सिों पर एक तरफ रातो भड़ानन्यस दामनपुस राज़ क्षपस विजयसेनम” अन दूसरी तरफ शक है। १६० किंवा रहता है ।। | शक-स० १६५ से १७२ सक इमन्ने भानप उपाधिबाले सिके भी मिले हैं। इन पर एक तरफ राज्ञो महाङ्कनमग्न दामनपुत्रस रातो महाइपिस विज्ञपसेनस' लिखा रहता है, परन्छ अभी तक यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि शके १६१ में यह क्षत्रप ही था या माप हो गया था। मीशा है उक्त संबई इसके साफ सि मिल जाने पर | यह गईमट्ट मिट जायगी ।