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इस लेखमाला से भी थेाड़ा बहुत मनोरंजन करने का उद्योग किया जाय।

यह लेखमाला १९१४ से सरस्वती में समय समय पर प्रकाशित होने लगी थीं। इससे इसमें बहुत से नवव्विकृत ऐतिहासिक तत्वों का समावेश रह गया है। परन्तु यदि हिन्दी के प्रेमियों की कृपा से इसके द्वितीय संस्करण का अवसर प्राप्त हुआ तो यथासाभ्य इसमे की अन्य त्रुटियों के साथ साथ यह त्रुटि भी दूर करने का प्रयत्न फ़िया जायगा।

इन इतिहासो के लिखने में जिन जिन विद्वानों की पुस्तकों से मुझे सहायता मिली है उन सबके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना मै अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ। उनके नाम पाठकों को यथास्थान मिलेंगे।


जोधपुर

आषाढ़ १५ वि० सं० १९७७

१ जुलाई १९२० ई०

निवेदक - विश्वेश्वरनाथ रेउ ।