पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३२१

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. रणथम्भारके चौहान । ( ६० स० १२९६ ) में अल्लाउद्दीन खिलजी गद्दीपर बैठा था । परन्तु हम्मीर इसके पूर्व ही राज्यफो क्वामी हो चुका था। | इस उपर्युक्त वृत्तान्त हुम्मारके भाई का नाम भौज लिखा गया है। राहू शायद सिंहका दासीपुर होंगा। पर्यो कि हम-महाकाव्य नर्वे | शके १५४ दें कमें लिखा है कि पाके आता बिंदुरकी तरह मोज हुम्मरका छोटा भाई था । मियेला राजा (देवसिंह पुत्र ) शिवसिंहद्वैयको सभामें विद्यापति नामक एक पण्डित था । उसने पुरुध-परीक्षा मामक पुस्तक बनाई थी । दह वि० सं० १४५६।३० स० १३९९ ) में विद्यमान था । अतः उधा समय हम्मीर के समयसे १०० वर्षके करीय ही आता है। उक्त पुस्तककी दुसरी कसमें लिखा है:

  • एक बार दिल्लका सुलतान अलाउद्दीन अपने सेनापति महिमसाही पर बहुत हुन्छ !भा । यह देख मयत महिमसा रणभोर राजा हमीदेवकी शरण में जा रहा । इस पर अलाउद्दीनने पड़ी भारी सेना ले इस किले घेर लिया । हुम्मरमें भी युद्धका जवाब से ही देना उचित समझा । एक दिनके युद्ध के अनन्तर बाशाने दूतद्वार। हमउसे मृतलाया कि तुम मेरे अपराधी महिमसाहको मुझे दे दो, नहीं तो, कल तुम्हें भी उसके साथ यमसदनकी यात्रा करनी पड़ेगी। इसके उत्तरमें तसे हम्मीरनें केवल इतना ही कहा कि इसका जवाब हम तुम्हारे स्वामीको जवाबसे न देकर तलवार ही देंगे । अनन्तर करीब तीन वर्ष तक युद्ध ता रहा । इसमें सुलतानकी आधी सेना नष्ट हो गई। यह हाल देख उनने लोट जानेका विचार मिया । परन्तु इ समय पमल्ल र रामपाल नामके हम्मीर के दो सैनापत अलाइनमें मिल गये और उन्होंने कैलमें सोय पदार्थों के समाप्त हो जाने की सूचना उसे दे वी । तया अहे मी विश्वास दिलाया कि दो तीन दिनमें भी हम

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