पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३१९

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राथम्मोरके घोट्टान । कुछ समय बाद एक दिन विहीश्वर मंजिने निवेदन किया कि हम्मीर प्रजाजन धर्मराहसे बहुत दुरित हो रहे हैं । यदि ऐसे मोके पर चढ़ाई कर फसल नष्ट कर दी जाय तो प्रना दृवित हो उसका साथ छोड़ दे। यह सुन अलाउद्दीनने एक लाख सवार साथ दे उलगको रायभरकी तरफ भेजा। जव यह हाल हुम्मरको मलूम हुआ तब उसने घरम, मम साही, जाजदेव, गर्भक, रतिपाल, तचर, मल, रामल्ल, चेचर आदिको अलग अलग सेना देकर इनैको मेजः । इन सुने मिलकर उलगी सेना पर हमला किया। इससे हारकर उसे दिल्लीकी तरफ झट जाना पड़ा। इसके बाद हम्मीरी सेवामें रहनेवाले मुसलमान सरदाराने मोजकी जागीर पर आक्रमण किया और वे पथसिह पकड़ कुर रणथभार ले आये । यह वृत्तान्त सुन अलाउद्दीन बहुत ही कुछ हुआ और उसने अपने अधीनके नरपातयों सहित अपने भाई उलगखाकों ओर नसतसाको रायभोर पर आक्रमण करने भेजा। इन्होंने वहाँ पहुँच इन द्वारा हरसे कहलाया कि यदि तुम एकलास मुह, चार हाथी, र चीनसो पोडे भेट देर अपनी कन्याका विवाह झुलतान साय कर हो, अथवा बादशाहकी आज्ञाका घन कर तुम्हारे पास आये हुए चार मगोठ सुदरकों हमें सौप , तो हम लौट जानेको तैयार हैं । परन्तु यदि तुम हुमार वात नहीं मानोगे तो तुम्हारा सारा देश मा भ्रष्ट कर दिया जायगा। यत् कुन हमीरने हुन्छ हो उस दूप्तको सभासे निकलवा दियः ! इस पर भीषण समाप्त हुआ । इस युद्ध नसरत घटसे मार गयी। यह देवर सुन बादशाह अलाउद्दीन सेनासहिंत रचय गोळेकी आपहुँचा । दूसरे दिन दिन तुग़ल साम । इसमें ८५००० मुसलमान भारे गये। यह देख वादशाहने हम्मीर के एक सेनापति नेपाल र थरके राज्यकी लालच देकर अपनी और मिला लिया । रातपार्ने सहका। सेनापति रनको भी इस जाल में शरीक कर लिया और ये ७१