पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३१७

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रणथम्भीर हाने। 19-कॅम्मर । यह जत्रासका पुन घा और उसके जीतज्ञी राज्यका स्वामी बना दिया गया। हामीर-महाकाव्य में इसके गीपर बैठने की समय वि० सं० ११३५. कित है। परन्तु प्रवन्धकोशके अन्त वरिवठीसे वि० स० १३४२१ इसका राज्याधिकारी होना प्रकट होता है । यह राजा बहा चार और प्रतापी था । इसकी वीरताका एक श्लोक | हम यहॉपर उद्वन कृरते हैं - मयमा क्रे प्रनित वलय किंमप्याकक्षाभ क्षति न था वैःचरितम् । मृतानःभस्माके भतु परचय यदि भुद्धि कयौ नई नई पराधीनरेगी । अर्थात्--हे गालो युइमें मरनेपर मेरा शरीर चाहे परके अधीन हो जाम पर तुमसे यही प्रार्थना है कि तुम मरे हुए मेर शरीरको अगाडीको ताफ ही स्वचकर ले जाना ताकि उस समय भी मेरे पैर पीछी तरफ न हों । । इस पाठक इसकी वीरताका अनुमान कर समाते है। इसका हट्ट भी बढ़ी मशहूर है । क्रास के प्रताप नेपोलियनही तरह यह भी जिस बात का विचार कर लेती थी उसे करके ही छोइला ॥ । इसकी तक, भाप निघालेसित हावत प्रसिद्ध है.* तिरिया-तेल मरठ च न दूजी आर ।' अर्थात स्वीका विवाह के पूर्वका तैनाभ्यद्द और हम्मर हु इस फी फिर न हो सकता। हुम्मी-महाकाय इसका वृत्तान्त इस प्रकार टिका है --