पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३१५

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रणथम्भोरके चौहान ! फरिश्ताका यह लेख केवल मुसलमानों की हारको छिपानेके लिये ही लिखा गया है । क्यों कि तबकाते नासि। उसी समयकी बनी होनेसे अघिक विश्वासयोग्य है। तबकाते नासिरीमें आगे चलकर खिा है कि, " मासिकंदीन मत्मूदशके समय हि० सं० ६४६ (वि० सं० १३०६-६० सं० १२४९५) में उलगखां, बड़ी भारी सेनाकै साथ, हिन्दुस्तान सबसे बड़े राजा याहदेव देशको व मैवाइके पहाड़ी प्रदेशको नष्ट करने की इच्छा से, पाथैभोरकी तरफ भेजा गया । वह पहुँच उसने उग्र देशको नष्ट कर अच्छी तरहसे लुटा । उक्त हिजरी सनके निज महीने में उलगवांके 'साधका नालक बहाउद्दीन ऐव, रणथंभोरके झटके पास मा मगा। उलगको सिपाही बहुसरो हिन्दु मार दिको लौट गये' । ” । | *फिर हिं० स० ६५१ (वि० सं० १३१०-ईस० १२५३)में उठगरा नागौर गया और वहां से ससैन्य रणथंभोरक तरफ रवाना हुआ। जय यह वृत्तान्त हिदुस्तानके सबसे बड़े प्रसिद्ध वीर और कुलीन राजा बादेवने सुना तन इसने उलगास्वा हराने के लिए फोन एकत्रिंत । यपि इसकी सेना चहुत यड़ी थीं, तथापि बहुत सामान 3tuदि छोडकर इसको मुसलमान के सामनेसे भागना पड़ ।” । उपर्युक्त वातसे विदित होता हैं कि रणथंभौर पर मुसलमानों ने दो बार हुमला किया, जिसमें पहली बार उनको हारना पड़ा और दूसरी बार उनी विजय हुः । परन्तु पिछी बार मी उगवः केवल देशको टकर ही झट गया है थंमोरपर चौहानको अधिकार चना ही रहा। हुर-महाकाव्यमें इसका १२ वर्ष राज्य कान लेरा है । परन्तु यह ठीक नहीं प्रतीत होता । क्योंकि हि० स० ६३४ ( वि० सं० १३१४ (1) Ethat's 1Istory of India, Vol II, 187, (3) Elox's Ilistory of India, Vol. 1