पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३०४

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खान-चंश । में चलकर तयमात-ए-नासिरके कर्ताने लिया है:* दुसरे वर्ष सुलतानने अपने पराजयका बदला लेने के लिये हिन्दुस्तान पर फिर चढ़ाई की। उस समय उसके साथ १२०००० बार थे। तराइनके पास युद्ध हुगा, इराने हिन्दू हार गये । यद्यपि पिथोरा (पृथ्वीराज ) हाथरसे उतर और घोडेपर सवार हो भाग निकली, तथापि सरस्वती के निकट पकड़ा जाकर करले कर दिया गया । दिल्ली | Taदरान भी उड़ाई गा गया | सुलतानने उसका सिर अपने मालेले तोते हुए उन दे दॉतसे पहचान लिया । ये युद्ध हिं० ० ५८८ ( वि० सं० १२४९-६० स० ११९२ ) में हुआ था। इसमें विजय | होने पर अजमैर, अबालककी पहाडियाँ, मॉसी, सरस्वती आdि अनेक इलाके सुलतानके अधीन हो गये ।" इसी प्रकार इस हमलेकै विषयमें तारीख फरिश्तामें लिखा है:---- ** १२०००० सवार लेकर सुलतीन गजनसे हिन्दुस्तान की तरफ चला | और मुलतान होता हुआ लाहौर पहुँचा 1 हाँसे उसने झामुलमुल्क हुन्ध को अजमेर भेजा और पृथ्वीराज्ञसे कहलाया 6ि या तो तुम मुसलमान हो जागे, नहीं तो हमसे युद्ध छ । यह सुन पनि आसपासकै सप राजा को एकत्रित कर ३००० ००६ सयार, ३००६ हाथ! और बहुत से पैदल लेकर सुलतानसे लडनेको चल्ला । सरस्वती पर दोनों फीजें एक दूसरे के सामने पड़ाव होलकर ठहर गई । १५० राजेंने गंगाजल लेकर कसम खाई कि या तो हमें श पर विजय प्राप्त में पा धर्म के लिये युद्वमें अपने प्राण दे देंगे । इसके बाद उन्होंने मुलतईनसे हा भेजा कि यो न तुम लौट जाओ, नहीं तो | हुमा अय सेना तुम्हारी सेनाको नष्ट श्रेष्ट फर दे। इस पर राहुतानने कृपट कर उत्तर दिया कि मैं तो अपने माईका सैनापति मात्र (३) Elliot's, listary of India, Vol. II, P. 06-97, (३) इग्में झामन्त ( सरदार } लोग भी शामिल है। २५७