पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२८५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________


भारत प्राचीन राजवंश तारीत्र फरितासे हिजरी सन् ६३(३० स ६८३-३० ६ "५४० ) ३६७ १६मु. १८७-वि० स० १०४५ ) और ३१९ (ई- स १००१-० : १०६६) में अजमेरका विद्यमान होना सिद्ध होता है। उसमें यह भी लिखा है कि हि० म० ४११ ६ जन { ६० सेः १०२४ के दिसंबर महीनेमें महमद गोरी मुलतान पहुँचा और बहस मनाथ जाते हुए उसने मार्गमें अजमेरो फतह किया। बहुतने विद्वान् एम्मर महाकाव्य, प्रवन्धकोश और तारीख फरिश्ता चिके वि० से १४५० के नादमें लिखे हुए होनेसे उन पर विश्वास नहीं करते । उनका कहना है कि एक तो १६ धीं मातादिले पूर्वका एक भी देव या शिल्पकाका काम यहीं पर मुहीं मिलती है, दुसरे फरिइतके पहले के किसी भी मुघल्लमान-छेकिने इसका नाम नहीं दिया है और तीसरा वि० सं० १९४ (३० स० ११५० ) के करीब बने हुए पृथ्वीराज-विजय नामक काव्य पृथ्वीरान पुत्र अजयदेवको अन्नमेरका बनानेवाला लिया है ।। अजमेर के आसपास इसके चॉईं और वेके सिक्के मिले हैं। इन पर सघी तरफ की मूर्ति बनी होती है। परन्तु इस कार इन मैदा होता है। जोर इट्टी तरफ भीमजयदेव' लिंपा होता है । चौहान प्राजा मैचर समय व सं० ११२८ १६० स० ११७}}} से विदित होता है कि अनप३) उपर्युक्त दृम्म ( चोदीके सि ) इस समय तक पचति धे।। इसी मारके ऐसे भी वीके सि के मिलते हैं, इन पर न तुरफ वमी मूत बनी होती है और उलट्टी तरफ * श्रमपनालदेव' (५) इद है के विधमरिमें गाड व में राके मापुर में है।