पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२६०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

सैन-वंश । राजाका राजाना आदि लूटना प्रारम्भ झिया। पतियारने घेश पर कृज कर लिया और नदियाको नष्ट करके लखनौतीको अपनी राजवान बनायो । उसके आसपास प्रदेशों पर भी अधिकार करके उसने अपने नामका ख़तवा पट्टबाया और सिक्का चलगि । यहाकी लुटका जात चहा भाग इसने सुलतान कुतबुद्दीन भन दियो । इस घटनासे प्रतीत होता है कि लक्ष्मण सेनके अधिकारी या तो चल्तिथारसे मिल गये थे या बड़े ही कायर थे; क्योंकि भविष्यहाका भय विसला कर बिना लड़े हैं। वे लोग लमण सेनके राज्यो बख्तियारके हाथ सौंपना चाहते थे । परन्तु व राजा उनके उक्त कथनसे न | पराया सच बहुतस त उसी समय उसे छोड़ कर चले गये । तथा, | जो रहे 'उन्होंने भी समय पर कुछ न किया । यदि यह अनुमान ठीक न हो तो इस बात को समझना कठिन है कि फेबल ८० सवारों सहित आये हुए परितपारसे भी उन्होंने जमकर लोहा क्यों लिया। बस्तियार, लक्ष्मणके समग राज्यों में ले सका। वह केवल रुनौतीके आसपास के कुछ प्रदेशों पर ही अधिकार कर पाया । क्योंकि इस घटनाकै ६० वर्ष बाद तक पूर्वी वट्टाल पर लक्ष्मपाके वंशजों का ही अधिकार था। यह बात सबकात नामसे मालूम होती है। उक्त तयारीसमें मुसलमानके इस विजयका सेवन नहीं दिखा। तथापि उस पुस्तकसे यह घटना हिंजर सन् १६३ (६० स० ११९९७) और हिजरी सन् ६०९ (ई०सं० १२०५ ) के बीचकी मालूम होती है । हम पहले ही लिख चुके हैं कि लक्ष्मण मैनके जन्मसे उसके नाम संवत् चलाया गया था तथा ८० वर्ष की अवस्था में बह चरितयार द्वारा यिा गया था 1 इसलिये यह घटना ६०स० ११९९ में हुई होगी। 3. Bm, A S. 1900, 97 and Elliot : LIistory of India, yol. II,F, ३01-.