पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२२९

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भारतकै प्राचीन राजवा इन्द्राज आदि शत्रुको जीत कर महोदय ( कन्नौज ) के राजश्मी न ली । फिर उसे चायधको दे दिया ! इस विषय में सालिमपुर ताम्रपमें लिखा है कि वर्मपालने पञ्चालकके राज्यपर ( जिसकी राजबानी कन्नौज थी ) अपना अधिकार जमा लिया था । उसका इस विजयको मत्स्य, मद्, कुरु, पजन, गेज, अचान, गान्धार और फै। देशकै राणा ने स्वीकार किया था । परन्तु धर्मपालने यह विजेत देश कन्नोजके राजाक ही लौटा दिया था। पूर्वोक्त भागलपुर के तान्नपनमें लिंखा है कि इसने कन्नौजका राज्य इन्द्रराज नामक राज्ञासे न लिया था । यह इन्द्रजं दुनिया ( माप नेट) का राठौर राजा तीसरा इन्द्र या । इस (इन्द्राज } ने यमुना पार र कन्नौजको नष्ट किया था । गोविन्दराजकै सम्भातके नामपन्नस यहीं प्रकट होता है । सम्मवत इसलिंए इससे राज्य निकर धर्मपालने कन्नौजफे राजा चन्मयुधको यहाँका राजा बनाया होगा । इस राठौर राजा सीसरे इन्द्राम समयमै घामका राजा पटिहार क्षित्तिपछि ( महीपाल ) या । अतएव चक्रायुध शाप उसका उपनाम ( रिश्ताब ) गई । नसारी में मिले हुए इन्द्रराजके तापनसे जाना जाता है कि उसने उपेन्द्र जीता था। वहीं इस *उपेन्द्र' शबसे चनायुका है। ताइपर्य है, पर्योंकि चायुम और ज्ञपेन्द्र दौना ही के नाम हैं। पूर्वोक्त तिपाल फोनका अधिकार छिन गया था, परन्तु अन्तम दूसरोकी सहायता से, उगने उसपर फिर अपना अधिकार कर 'न्यी या ।। यजुराहो लेपसे जाना जाता है कि चन्देल राजा ईन परिहार क्षितपाको कन्नोजक गद्दी पर बिठाया 1 इस में मर्तत ना !) Ep Ind Ft fr,