पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१९३

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मारतके प्रायन राजवंश दूसरा दानपत्र वि० सं० ११९२,(ई: स० ११३५), मार्गशीर्ष गद्दी तीजका है। इसका दूसरा ही पा मिला है। इसमें मामलादेवी मृत्य-समय सङ्कल्प की हुई पृषीके दानका मित्र है । शायद यह मोमसादेवी यव¥ी मता है । | उस समय यशोवर्मीका प्रधान मन्त्री रजपुन ईदधर पा ।। | १५ जपवर्मा ।। यह अपने पिता यशौचमका उtधिकारी हुआ । परन्तु उस समय मालपर गुजरातके चालुक्य राजाम अधिकार हो गया था। इसलिए शायद जयवम विन्ध्याचल की तरफ पल्ला पिा हैं।गा। ई० स० ११४ से ११७९ के बचका, परमाका, कोई ठेस अबतक नहीं मिला। अतएव उस्, समय तक यदु माथे पर गुजरातवाड़ा अधिकार रहा होगा। पचमक देहान्त घाई मलिदाधिपतिका सिन चल्लालदेव नाम साध लगा मिलता है । परन्तु न त परमारों की बंशावलीमें हैं। यह नाम मिलता है, ने अब तक इसका कुछ पता है ढ़िा है कि यह राना सि वैशा या । | जयसिंहको मृत्यके बाद गुजराती गद्दी के लिए झगड़ा हुआ । इस सगमं भीमदेफिी यश कुमारपाल कृतार्य हुआ । मेरुतुङ्गके मतानु-, सार सु. ११९९, छातक बदि २, रविवार, हस्त नक्षत्र, में मारपाल गड़ी पर वेडा 1 परन्तु मैतुइकी यह कल्पना सत्य नहीं हो सकती ।। | कुमारपाल गद्दी पर बैठते हैं। उसके विरोध कुटुम्वियाने एक न्यू मनापा । मालवेका चल्लालदेव, चन्द्रावती ( मायके पास } का परमार राजा विक्रमसिहे और सामरका चौहान राजा अमरान । व्यूह सयिक हुए । परन्तु अन्तमें इनका सारा प्रयत्न निष्फल हु। बिक्रमसिमा राज्य उसके भने यशोधली निळा । यह अधजल कुमार(।) Bombay Gax., lajtak, Tr 181–194 १५८