पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१६१

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भारतके मान राजबंश अर्थात् कविराज मौजक क तर्क प्रशंसा की जाय। इसके छान, ज्ञान और झार्यों को बरावरी नहीं दर सकता। फहण-कृत राजतराणमें मा, राजा फलशर्के वृत्तान्तमें, मोजके दान र विद्वत्ताकी प्रशंसा है। इसका वर्णन हम भोजका राजन्यकाल निश्चय करते समय में।। | काव्यप्रकाश मम्मटने मी, उदासालार उत्प , मोजके इनकी अल्लाका बोधक एके झोंक उद्घृत किया है। उरना चतुर्थपाद |गदिनेषु मौनृपसत्यागापितम्। अत् मोजके आश्रित विद्वानोंके घरों में जो ऐश्व देखा जाता हैं वह सब भोजहीके दानीं तीला है। विनारमें मिली हुईं मस्तुपालक प्रशस्ति म भौजी छानशीलता प्रशसका उल्लेख है । प्रबन्धकारोंने हो इसी बहुत ही पसा की है। | यह राजा शैव या, जैसा कि उद्यपुरकी प्रशस्तिके २१ ॐ लोकसे ज्ञात होता है। यथा, तनादित्यप्रापे भरवि सदर्न नयि भईभरें। व्याप्ता धारेव घान रिपुतिमिरभरैमललोकस्वातु ।। अर्यंत उस तेजस्वी शिबमके स्वर्ग जाने पर घारा मारीकी सरह समम पृथ्वी शप अन्घमासे व्याप्त होगई। भौज दूसरे घर्मके विद्वानोंका भी म्मान करता या। जन मौर हिन्दुभके शास्त्रार्थको नही अनुराग या। अबणजेलमुल नामक यामहे कनारी भाषा एक शिलालेख मिना मन-सबका मिला है। उसे डाक्टर राइस १११५ ईसवीका बताते हैं। उसमें लिया है कि भन्ने प्राचन्द्र जैनाचार्य पैर पूजे में। १८