पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१४९

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मारसके प्राचीन राजवंश हलायुध। इसने मुझके समपर्म दिइ-इन्दन पर ‘मृतावनी' की खीं। इस नामके और दो कवि हुए है । डाक्टर मापारकर्के मतानुसार कवैिरहस्य और मेघान रत्नमाला कर्ता हलायुध दणके राइटोंक संगमें, वि० सः ८६७(१० ईस ) में विशमान मा ।। इस नामझा दुसरा कवि बालके आखिरी हिन्दू-राना लक्ष्मणसेन की सभमें, वि० सं० १२५६ ( ११९९ ईसी) में, बिंद्यमान था । मान्धाताके अमरेश्वर-मन्दिरकी विस्तृत शायद इसी वनाई हुई है। यह स्तुति वाँ दीवार पर खुदी हुई है। तीसरा हलाप डाक्टर बुलाके मतानुसार मुल समयका यह हापुघ ६ । कथासे ऎसा मी पापा उरला है कि इसने उसीव्रन् टीकाके सिवः ‘राजपवहरितव' नामक एक कानुनी पुस्तक भी बनाई थी। जिस समय यह मुन्नका न्यायाविका था इ समय इसने इसकी रचना फी थी। । कोई कहते हैं कि हलायुघ नाम १२ कवि हो गये हैं। अनितगाते। यह माथुरसयका दिगम्बर जैन साध शा । इसने, वि स १०५० (९९३ ईसवी ) में, राजा मुनके राज्य-काल सभापताइदा नानक पप बनाया, अर, वि० १० १६० ( १८१३ ईसी) में धर्मपरीक्षा नाग पन्य रचना । इस गुरुका नाम मापन था । ८-सिन्धुराज ( सिन्धुल }। मुशने अपने जीते जी मोनको युवपन बना लिया था। उसके यहे | ही दिन पाद नए मार गया 1 इस समय, मोजके पार होने कारण, उसके पिता सिन्धुराजने आशङ्कायॆ अपने हायमें ले टिया । इसी १०६