पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१४८

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मायेके परमार। | इसके बनाये हुए बहुत से लोक काश्मीरके कवि क्षेमेन्द्रने अपनी • औचित्ययेचारप' नामक पुस्तफ उद्धृत किये हैं। पर चेक नवसाहसाचारेतमें नहीं हैं। इन श्लोकांनं माळयेके राजाका प्रताप-वर्णन है। इनमें से एक में मालवैके राजाके मारे जानेका वृत्तान्त भिसे यह पाया जाता है कि वे श्लोक राजा मुझसे ही सम्बन्ध ख़ते हैं। इससे अनुमान होता है कि उसने मुझकी प्रशंसा में भी किसी कान्यकी रचना की होगी । | म कविके गनेक श्लोक सुभाषितालि, शाइँघरपद्धति, सुचतिलक आदि गन्यमें उद्धृत हैं। | इसकी कविता चहुत ही सरल और मनोहर है । यह कवि नवसाहसाहूचरितके प्रत्येक सगैकी समाप्ति पर अपने विताका नाम मृगाइगुप्त लिखता है ! धनञ्जय ।। इसके पिताका नाम विष्णु या 1 यह भी मुञ्चकी सभाका कवि था। इसने ' दशरूपक' नामका मन्य बनाया। | धनक। यह धनञ्जयका भाई था । इसने अपने भाई रचे हुए दशरूपक पर * दशरूपावलोक' नामकी टीम लिपी और * काव्यनिर्णय ' नाममा अलङ्कारमन्य बनाया। इसका पुन वसन्ताचार्य म विद्वान था । उसको राजा मुन्नने तयार नाभा वि, वि० सं० १०३१ में, दिया था। इस ताम्रपत्रका हम । पहले ही जिफ कर चुके हैं । इसरो पाया जाता है कि ये लोग ( घनिक और धनञ्जय ) अहिच्छत्रसे आकर उनमें रहे थे। ११) इस भौगगासून परापरनामः पपग्रतस्य तौ ननसाइयाइबरने म ध्ये ......... सः । १३) Ind, Ant., Yel. p. 51, १६५ - - --