पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१३६

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मालकै परमार । ऊपर कहे हुए श्रीहर्प दे ना मिलने से पाय जाया है कि. इस राजा नाम भी था, न कि है; जैसा कि गृह मूलरा अनुमान था और जिस पर उन्होंने यह कल्पना की थी कि इस नामके दो टुकड़े होकर प्रत्येक टुकड़ा अलग अलग नाम बन गया होगा। श्रीहर्ष| झा तो श्रर्य ही रक्षा होगा और सिंहका अपभ्रंश यम बन गया होगः ।। परन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं मालूम होता । इसकी रानफा नाम बना था । । इस राजाने रुद्रपाठी देशके राजा तथा हूझो जीता। | उदयपुर| प्रशस्ति बारहवें श्लोकमें लिप्त है । इसने शुद्ध tढुंग राजाकी लयम छीन ली । धनमाल कविं अपने पायलच्छी नामक कौशॐ अन्तमें, श्लोक २६ में दिखती है कि विक्रम संवत्. १०२९ में जब मालवावालों के द्वारा मान्यवेट छा गया तन 1।नगरी-निवा| धनपाल कविने अपनी वहिन सुन्दराके लिए यह पुस्तके बनाई । धनमाला यह लिखनी श्रीहर्षकै उक्त विजयका दूसरा प्रमाण । होने के सिवा उस घटनाका ठीक ठीक समय भी बतलाता है। इसी लड़ाई हर्षका चरा माई, चागड़कर राजा कैदेच, नर्मदा तट पर, मटाल { राव) से छूता हुभा मारा गया। (१) श्र धैक्षज्ञस्येव अशमलेरियाम्विका ।। | चडजेत्यमव कलने यस्य भूरेवे !८६ ti | न० ० ६०, स० ११ ) परन्तु इसका मःम माझ पाते में पाग्देवी और भोजप्रबन्ध रावी* लिया है । १३) हिंगदेव दक्षुिण्ण्का राष्ट्रकूळ { टोह ) राजा मा । उसको राजधानी मान्यसैट ( मलइ-निजाम अन्य पौ।। {1} भ पुस्तक में अई भी रहा है कि इसने में ४५ था, २१.. इथ, ३७५ है, १०० मत र न जाण दीर ( एक तरका सिना )। माइ झिमें ।