पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/११०

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परमार वंश ।
 

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परमार-चंश । रिन्युज नाम नहीं मिलता । इनमें उत्पलसे ही परमारोंकी वंश| परम्परा लिखी गई हैं । १-सिन्धुराज । पूक किराफ लेखानुसार यह राजा मारवाड़में बड़ा प्रतापी हुआ । कैव$ चाय लेने किंवा -- निघुराजे महाराजः राम-ममण्डलें ॥ ४ ॥ यह राज्ञा माळवेके सिन्धुराज नामक राजासे भिन्न या ! यह कथन इस चातसे और भी पुष्ट होता है कि विक्रम संवत् १९८८ के निकट आचूके सिन्धुजका सात बंशज घन्धुः सलिङ्क भीम द्वारा चन्द्रावतसे निक्का दिया गया था और यहाँसे माकै सिन्घुइनके पुत्र भोजकी शरण में चला गया था। सुश्मव है कि जालोरका सिन्युराजे रफा मन्दिर इसन (साबूके सिन्घुराजने ) बनवाया हो । मन्दिरपर विक्रम संवत् ११७५ ( ईसवी इन् ि१९१७) में बलदेवकी रानी मैलरदेवीने सुवर्णकलश चढ़याया था । इससे यह भी प्रकट होता है कि उस समय जादौर पर मी परमाको अधिकार था। ३-उपलजि | यद्यपि पिक-संवत् १९९९ १ सय सन् १०४२ } } यसन्सग हे' इसी राजाने पैशावली.प्रारम्भ की गई है तथापि फिराहू कृषसे मालूम होता है कि यह सिन्धुराना पुन्न था । मूता नैणसीनें भी अपनी पातमें घूमरज़िके बाद उपलराजसे ही पैशाची प्रारम्भ की है । उसने लिखा है

  • कपलाई किराडू द ओलियाँ बसियो, दिसाय प्रसन्न हुई, मारु अतायौ, ओसियनें देरी करायौ।" ५ )En, in,Yal.17, P.i,