पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/१०६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

हैहयवंश। संकम, आवमल्ल, विंधण र वन्नदेव । इसके एक कन्या भी थी । का नाम सिरिया देव या । इसका विवाह सिंहवंशी महामण्डलेश्वर चावंड दुसरे के साथ हुआ था । वड़ येळवनं प्रदेशको स्वामी था । स्विरियादेवी और चनदैवफी मातफा नाम एचदेवी था। विजदेवके समयके कई लेख मिले हैं। उनमे अन्तिम व वर्तमान श० सं० १०९१ १ वि० सं० १२२५) अघाड़ बी अमावास्या ( दक्षिणी ) का है। उसका पुत्र सोमेश्वर उसी वर्षसे अपना राज्यवर्य ( सुन-जुलूस ) लिखता है । अतएव विजलदैवफा देहान्त र सोमेश्वरढ़ा राज्याभिषेक वि० सं० १५२५ में होना चाहिए । यह सोमेश्वर अपने पिताके समयमें ही युवराज़ हो चुका था । | ४-सोमेश्वर ( सोविदेध )। यह अपने पिताका उत्तराधिकारी हुआ । इसका दूसरा नाम सोयिदेव या । इसके सिताव, ये थे-भुजवलगड, रायमुरारी, समस्तभुवनाश्रय, पूष्यीयम, महाराजाधिराज परमेश्वर और फलनुर्य-चक्रवर्ती ।। | इसकी रानी सालदेव संगीताचामें वही निपुण थी । एक दिन उसने अनेक देशों प्रतिष्ठित पुष्पोंसे भरी हुई राजसभाको अपने उत्तम गानसे प्रसन्न फर दिया । इस पर प्रसन्न होकर सोमेश्वरने उसे भूमिदान करने। आशा दी। यह बात उसके ताम्रपत्रसे प्रकट होती है। इस देशमें मुसलमानोंका आधिपत्य होने बादसे ही घानी सियों में संगीतविशा देत होगई है । इतना ही नहीं, यह छीन और राज्य1वद्या अन उनके लिये भूपणके बदले दृश्ण समझी जाने लगी है। परन्तु प्राचीन समय में खियाको संगीत दिवा दी जाती थीं । तथा यह शिक्षा स्त्रियांके लिये भूपया भी समझी जाती थी । इसका प्रमाण रामायण, फाईवरी, माङयिकानमैप और महाभारत आदि संत साहित्यके गर्ने प्राचीन ग्रन्यो मिड़ता है। तः । कहीं प्राचीन शिडॉमें ५