पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/६१

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SAAMANA does ५४ भारत की एकता का निर्माण तो भाई, पहले से ही कहते थे कि क्यों इनको आजादी देते हो । आजादी को ये हजम नहीं कर सकेंगे। कई अंगरेज लोग ऐसे भी थे, जो समझते थे कि जब हिन्दुस्तान का किनारा छोड़कर जाएंगे, तो बम्बई की बन्दरगाह पर लोग आएंगे और कहेंगे कि तुम इस देश से मत जाओ और इधर ही रहो। वे मानते थे कि हम अपना राज नहीं चला सकेंगे । अब वहाँ तक तो हम नहीं गिरे और हमने एक तरह से तो हिन्दुस्तान को ठीक कर लिया। जब पंजाब का टुकड़ा हुआ और बंगाल का टुकड़ा हुआ, तो बंगाल में तो गान्धी जी बैठे थे, सो उन्होंने वहाँ की हालत को सँभाल लिया। उम्मीद से भी कहीं अधिक अच्छी तरह संभाल लिया। उससे दुनिया पर बहुत असर पड़ा। हम पर भी असर पड़ा । मुल्क पर भी असर पड़ा। लेकिन पंजाब में जो हुआ, वह बहुत ही बुरा हुआ। पंजाब और उत्तर पश्चिम के सरहदी प्रान्त में। इन दोनों प्रान्तों में जो स्वारी हुई, जो अत्याचार हुआ, वह इस प्रकार का हुआ कि जिसका बयान करने से हृदय फट जाता है। तो यह सब जो हुआ, उसकी चोट हम लोगों को बहुत लगी। और एक जिन्दा आदमी के सर पर जब घाव पड़ता है या जरूम लगता है, तब उसमें से खून निकलता है और जख्मी को बेहोशी आ जाती है । वह चक्कर खाकर गिर जाता है। इस तरह से हिन्दु-- स्तान का भी हाल हो गया। पंजाब तो हिन्दोस्तान का सिर ही है। हिन्दो- स्तान के सिर पर घाव पड़ा और उसमें से बहुत खून बहा । इस तरह खून निक- लने से हमारा देश गिर पड़ा, तो उसको सब तरह से उठाने की हमने पूरी कोशिश की । इस कोशिश में हम बहुत दूर तक कामयाब भी हुए। और जो हिन्दुस्तान बाकी रहा है, उसको एक तरह से हमने संगठित कर लिया वह होश में आ गया और सावधान हो गया। लेकिन यह सब जो हुआ है, वह पूरी समझ और रजामन्दी से नहीं हुआ है। वह पुलिस की बन्दूक से, मिलि- टरी की बन्दूक से और फौज के डंडों से हुआ है। वह दिल से नहीं हुआ है तो उसकी चोट गान्धी जी को लगी है। जब तक हिन्दुस्तान पूर्णतया दिल का परिवर्तन न करे और जिस तरह से हमें स्वतन्त्र हिन्दुस्तान में अपना काम करना चाहिए, उसी तरह जब तक हम न करें, तब तक हमारा काम नहीं हुआ और तब तक गान्धी जी को चैन नहीं है, वह बेचैन हैं। अब उनको दिल्ली में छोड़कर मैं इधर आया, तो मुझको