पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/४६

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लखनऊ इस टूटी हुई सरकार ने क्या कुछ किया। बहुत-से लोग इसे नहीं समझते हैं और कहते हैं कि अभी तक सभी कुछ पुराने ढंग से चलता है। अभी तक वही पुराना राज है, कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन वे देखते नहीं है कि आजादी के साथ मुल्क का दो टुकड़ा हुआ। यह छोटी बात नहीं है, बहुत बड़ी बात है। दो बड़े प्रान्त थे बंगाल और पंजाब, उनका भी टुकड़ा किया गया। यह भी बड़ी बात है। फिर सरहद को ठीक करना भी खतरे की बात थी। भली-बुरी वह भी हमने कर ली। हमारी हुकूमत चलाने के लिए लोहे का एक चौखटा था, जिसको स्टील- फ्रेम कहते हैं। उसमें १२०० से लेकर १३५० तक आदमी थे। वे ही सदियों से हमारे हिन्दुस्तान का तन्त्र चलाते थे। उनमें अधिक परदेसी लोग थे। उसका भी हिस्सा किया । लेकिन यह हिस्सा दो तरह से हुआ। उसमें जितने अंग्रेज थे, वे चले गए। ५० फी सदी के करीब उनमें अंग्रेज थे, उनमें चन्द ही रह गए, बाकी सब चले गए। बाकी जो रहे, उनमें से ५० फी सदी पाकि- स्तान में चले गए। बाकी में से भी कई लोग हमारे धनिकों, इन्डस्ट्रियलिस्टों (व्यवसायपतियों); के पास चले गए। नतीजा यह हुआ कि हमारे पास चौथाई 'हिस्से की सर्विस बच रही । उसी से हम काम चलाते हैं । बहुत से लोग समझते थे, खास तौर से अंग्रेज आफिसर सोचते थे कि इनका काम नहीं चलेगा। जो सर्विस चलती थी, वह टूट गई, तो इनका काम कैसे चलेगा? लेकिन हमारा काम चलता है। उसके बाद हमारी जो मिल्कियत थी, उसका भी हिस्सा किया। एक कुटुम्ब की मिल्कियत का हिस्सा करने में कितना समय लग जाता है ? यह काम चन्द रोज में नहीं होता । लेकिन हमने सारे मुल्क के हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के रूप में, दो हिस्से किए । उसके लिए हम किसी अदालत में नहीं गए। आपस में बैठकर यह सब कर लिया। पाकिस्तान चाहे कुछ भी कहे, लेकिन मैं कहता हूँ कि अगर हमें पाकिस्तान को खत्म करना होता, तो हम यह सब कभी न करते। हमने इस सब में उदारता दिखाई। हमने इस सब में वैसा ही बरताव किया, जैसा छोटे भाई के साथ करना चाहिए । कोई भी स्वतंत्र आदमी हमारे पक्ष में फैसला देगा। इस तरह से हमने सारी मिल्कियत का फैसला कर लिया। जो कर्ज देना था और जो रुपया दूसरे मुल्कों से लेना था, उस सब का भी फैसला किया।