पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३७८

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- हैदराबाद ३४५ लिया है कि जो कुछ हुआ, सो हुआ। तुम अपना काम चलाओ, हम अपना चलाएँ । एक दूसरे का साथ दो । एक दूसरे का पैर खींचने की आदत छोड़ दो। तब तो हमारी आपस की मुहब्बत हो सकती है। यों झगड़ा एक नहीं है, अनेक झगड़े हैं। हमारी सब नदियाँ पड़ी हैं। पाकि- स्तान में उन का पानी जाता है । नदियों का मूल हमारे यहाँ है । वे कहते हैं कि इसका फैसला करो। ठीक है, फैसला करो। सिन्ध में और पंजाब में नदियों की कमी नहीं है। दोनों मुल्कों के लिए काफी पानी है। बैठ कर फैसला करो। लेकिन फैसले की मंशा किए बिना सिर्फ यही मंशा करना कि किसी न किसी तरह हमें जी भर कर पानी मिल जाय, यह कैसे हो सकता है ? जिन आद- मियों को हमने निकाल दिया, जिनके पास पंजाब की सिंचाई थी, उनको मुल्क में से निकाल दिया; सिक्खों को निकाल दिया, हिन्दुओं को निकाल दिया। अब यह कहना कि पानी भी हमारा ही है, जमीन भी हमारी ही है और जो लोग गए, उनका सब बोझ तुम्हीं उठाओ। यह चीज होनेवाली नहीं है। वह इन्साफ से होगा। अगर ये सब चीजें करनी हों, तो हमारी तरफ से कोई रुकावट नहीं होगी। लेकिन जब हमको विश्वास होगा कि ये बातें सही हैं और वे सचमुच चाहते हैं। ऐसा हुआ, तो हम जरूर करेंगे । मने अभी दिल्ली का ऐग्रीमेंट किया। दिल्ली में बैठकर प्राइम मिनिस्टर से साफ साफ बात करके बंगाल के बारे में एग्रीमेंट किया। अब यह किस तरह से वह चलता है ? कितने हिन्दू कहाँ रहते हैं, कितने वहाँ से भागते हैं ? कितने मुसलमान इधर से जाते हैं कितने वहां से भागते हैं ? यह सब कछ देखने की बातें हैं। क्योंकि हमारा खयाल है कि ऐग्रीमेंट का केस तो एक ही है। यह जो करार किया गया है, वह सही तरह से अमल में आता है कि नहीं। उसका उद्देश्य एक ही है कि जो हिन्दू वहां से इधर आ गए हैं, वे वापस चले जाएँ। जो मुसलमान भाग कर उधर गए हैं, वे लौट आएँ । यह बातें दोनों बंगालों में हो जाएँ, तो समझ लीजिए कि हमारा एग्रीमेंट सच्चा है । ऐसा न हुआ तो हम जबान से कितनी भी बातें करते रहें, कहते रहें कि ठीक हो रहा है, ठीक हो रहा है, उससे कुछ भी काम नहीं होगा। हमारी ख्वाहिश है कि ठीक काम होना चाहिए । बहुत लोग कहते थे कि हम लोग यहाँ नासिक कांग्रेस में बखेड़ा करेंगे, वहाँ झगड़ा होगा, हिन्दू मुसलमान के सवाल पर झगड़ा होगा। आपने देखा कि हमारी कांग्रेस के प्रधान ने कलकत्ता में जाकर स्पीच दी कि पाकिस्तान