पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३२०

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२६१ चौपाटी, बम्बई चन्द दिनों के बाद वह रिपब्लिक बन जाएगा। पिछले ढाई साल इस सरकार ने जो काम किया, उसमें कुछ अच्छा काम भी किया है या नहीं? या सभी बुरा ही काम किया है? तो आपको यह समझना चाहिए क्या देश में कोई दल है, जो सरकार को ठीक बना सके, ऐसी सरकार बना सके, जिससे आपको सुख हो ? अगर कोई वैसी सम्भावना होती तो हमारे जैसे लोग, जिनके कंधे अब कमजोर हो गए हैं, इस बात से बहुत खुश होंगे कि हम पर से बोझ उठ जाएगा। लेकिन उसके लिए उन लोगों को जवाबदारी लेने के लिए तैयार होना होगा। उसके लिए जवाबदारी की लियाकत होनी चाहिए। उस लियाकत का आपको सम्पादन करना पड़ेगा। जो आज रात-दिन दूसरों की नुक्ताचीनी करता रहता है, वह खुद कोई काम नहीं उठा सकता। आज हमें नुक्ताचीनी की आदत पड़ गई है । हम दूसरों के कसूर देखते हैं, लेकिन अपनी क्या कमजोरी है, वह सब हम नहीं देख सकते । यह समझ लेना कि भला, बुरा जो कुछ भी होता है, वह दूसरों ने किया है, हमने नहीं किया, तो भला इस तरह से कोई काम हो सकता है ? आपको समझना चाहिए कि आज दुनिया परेशान है। किसी मुल्क में शान्ति नहीं है । विश्व युद्ध के बाद जो क्रान्ति हो रही है, उसके असर से हम नहीं बच सकते । एक बात आपको जाननी है । वह यह कि हमने इतनी कोशि करके हिन्दु- स्तान को आजाद बनाया। उसके लिए हमने इतनी कुर्बानी की। तो क्या आजादी के साथ हमारा काम खतम हो गया? ऐसी बात नहीं है । अब हमें हिन्दुस्तान को मजबूत बनाना है और उसे सुखी बनाना है, तो उसके लिए हमारा फर्ज क्या है ? हमें सोचना चाहिए कि हमें दूसरों के लिए क्या करना चाहिए। अगर हम इस तरह न सोचें और यह जवाबदारी सरकार पर छोड़ दें, तो उससे हमारा काम न बनेगा। अब देखिए मैं आपके सामने वह बात रखता हूँ, जिससे पिछले दिनों सरकार की काफ़ी बदनामी हुई । एक बात तो यह हुई कि दिवाली के अवसर पर लोगों को काफी शक्कर नहीं मिली। इस बात पर बहुत शोर मचाया गया । शायद ठीक था । मैं समझता हूँ कि शक्कर न मिलने से मुझे भी दुख है । लेकिन इसका कसूरवार कौन था? उसके लिए जब तक पूरी जाँच न हो, तब तक जिसने कसूर किया वह भी यही कहेगा, कसूर मेरा नहीं, दूसरों का कसूर है । व्यापारी लोग कहेंगे कि कारखाने वालों का कसूर है। कारखानेवाले