पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/३०९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८२ भारत की एकता का निर्माण न हो, उनके नसों में रुधिर बहनें न लगे, तब तक हमें आपस में एक दूसरे के सामने मोर्चा बाँधने से कोई फायदा नहीं होता। आप लोगों को यह समझना चाहिए कि यदि हमें आर्थिक स्वतन्त्रता चाहिए, तो उसके लिए हमें काफी कुर्बानी करनी पड़ेगी। जो कुर्बानी हमने आजादी पाने में की, उससे दूसरी प्रकार की यह कुरबानी होगी और उसमें काम भी दूसरे प्रकार से करना पड़ेगा। तो उससे आज खेत में काम करनेवाले किसान, फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर, सामान्य वर्ग, जिसको मध्यम वर्ग कहा जाता है, जिसके ऊपर आज सबसे अधिक बोझ पड़ा है, और धनिक लोग सबको कष्ट है । मान लीजिए, धनियों को अधिक कष्ट नहीं होगा। तब भी हमारे मुल्क में धनिक तो बहुत कम है। हमारा मुल्क गरीब है, और उसमें बहुत थोड़े धनिक लोग हैं। रात दिन उन्हीं के पीछे लगे रहने से हमको कोई फायदा नहीं होंगा। फायदा हो तो, में भी आप के साथ शरीक हो जाऊँगा । लेकिन में जानता हूँ कि हमारे मुल्क में अनुभववाले लोग बहुत कम है । और सब लोग कहते हैं कि हमें आर्थिक स्वतन्त्रता चाहिए। साथ ही सब तो नहीं, पर कई लोग कहते हैं कि सारा उद्योग सरकार को अपने हाथ में ले लेना चाहिए । सारी इण्डस्ट्री नेशनलाइज़ ( व्यवसायों की राष्ट्रीयकरण ) करनी चाहिए। वह केवल सिद्धान्त की बात है। वह सब अनुभव की बात नहीं है। क्योंकि हमने अभी तक कुछ काम तो किया नहीं है, और जो कहते हैं उन्होंने तो कुछ भी नहीं किया। वह कब करेंगे, वह तो ईश्वर के हाथ की बात है । मैं नहीं जानता । करें तो हमारे लिए बहुत अच्छा हो जाएगा । लेकिन अगर आज में नेशनलाइजेशन ( राष्ट्रीयकरण ) के बोझ को उठा सकू तो एक मिनट की भी देरी नहीं करूंगा। लेकिन हमारे मुल्क में जितनी शक्ति है, उस सबका हमें उपयोग करना है और मुल्क में आर्थिक स्वतन्त्रता पैदा करने में सबका साथ लेना है । उसमें सब को थोड़ी-थोड़ी कुर्बानी करनी पड़ेगी। हमें सव का साथ लेना पड़ेगा। उसमें आप लोग समझपूर्वक जितना ज्यादा साथ देंगे, 'अच्छा है। ये जो पंजाब से या सिन्ध से भागे-भागे शरणार्थी आए हैं, उन लोगों का दुख क्या मजदूरों और किसानों के दुख से कम है ? किन से कम है उनका दुख? उन्होंने सब चीज गंवाई है, लेकिन हिम्मत नहीं गंवाई। जब तक हिम्मत है, तब तक सब ठीक है । जब हिम्मत गुम जाती है, तब मनुष्य नीति से भ्रष्ट उतना