पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२९४

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राष्ट्रीय मजदूर संघ का दूसरा अधिवेशन २६६ परेशान थे और कई मालिक भी परेशान थे। आखिर एक हफ्ते की मेहनत के बाद एक बड़ा सिद्धान्त का आविष्कार हुआ, जिससे मिल-मालिक और मज- दूरों के बीच में समझौता हो गया। यह समझौता इस तरह से हुआ कि मालिक और मजदूरों के बीच में कोई झगड़ा हो तो उस का फैसला हड़ताल से नहीं, मार पीट से नहीं, जबरदस्ती से नहीं, बल्कि पंचायत से होना चाहिए। मजदूर और मालिक मिलकर एक सरपंच रख दें और उनका जो फैसला हो, वह मान लिया जाय । अब, हिन्दुस्तान की मजदूर जनता में वह पहला फैसला था, जिसने सारे मजदूरों में एक नई जान डाल दी। मिल-मालिकों ने आखिर यह चीज कबूल की। उसके बाद १५, २० सालों तक गान्धी जी ही मजदूरों की तरफ से पंच रहे । मिल-मालिकों और मजदूरों के बीच जितने झगड़े होते रहे, उनका फैसला मजदूरों की तरफ से गान्धी जी और मिल-मालिकों की तरफ से मिल- मालिक मण्डल का प्रमुख मिलकर कर रहे। उसके बाद किसी और निष्पक्ष पुरुष को रख दिया गया। लेकिन उसका नतीजा यह हुआ कि अहमदाबाद में कम से कम हड़ताले हुईं और अहमदाबाद का उद्योग सब से ज्यादा आगे बढ़ने लगा। इसी बीच में, शुरू ही से अहमदाबाद के मिल मजदूरों का एक प्रकार का यह सौभाग्य था कि उनको गुलजारीलाल नन्दा मिल गया । नन्दा पंजाब से एम० ए० की डिग्री लेकर सब काम छोड़ अमदाबाद आकर बैठ और उसने अपना जीवन मजदूरों के काम के लिए अर्पण कर दिया । उसके बाद खंडू भाई आया । कुछ और लोग भी वहां से मिले, और मजदूरों का संगठन पक्का बन गया। लेकिन आज तक भी अहमदाबाद में कभी मजदूरों पर गोली चलाई गई हो, ऐसी बात सुनने में नहीं आई। हमारी पुलिस को हमारे मजदूर पर गोली चलानी पड़े, उससे ज्यादा शरम की बात कोई नहीं हो सकती। तो इस प्रकार अहमदावाद में जो एक मजदूर संगठन बना, मैं चाहता हूँ वैसा सच्चा ट्रेड यूनियन हिन्दुस्तान भर में चले । अहमदाबाद के मजदूर-संगठन की स्थापना के तीन साल के बाद एक ट्रेड यूनियन कांग्नेस हुई। लाला लाजपतराय उसके प्रधान हुए । यह एक आल इण्डिया जल्सा था । अब एक स्थाई आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस बना दी गई। आगे चलकर पण्डित जवाहरलाल इस आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्नेस के प्रधान बने । उसके बाद बाबू सुभाष चन्द्र बोस प्रधान बने और गया,