पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२८६

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संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन करते हुए २६१ संकुचित क्षेत्र में हम खेलते रहेंगे, तो हम गिर जाएँगे। उसमें हमको लाभ नहीं होगा। उससे हमारी उन्नति नहीं होगी, हमारी प्रगति नहीं होगी। तो जो चीज़ आखिर हमको जबरदस्ती करनी पड़े, लाचारी से करनी पड़े, उसे स्वेच्छा से करना और समय देखकर समझपूर्वक करना, उसी में हमारी इज्जत हैं, उसी में हमारी सभ्यता है । तो भारत की संस्कृति और राजपूताना की संस्कृति की आज की यह मांग है कि हम समय को पहचान लें और अपने चारों तरफ देखें । आप देखें कि चाइना में क्या हो रहा है ? हमारा अपना मुल्क' भी 'बहुत बड़ा है, चीन उस से भी बड़ा है। हमारी जितनी आबादी है, उससे उसकी आबादी ज्यादा है। बह गुलाम मुल्क भी नहीं है। हम तो गुलामी में बहुत साल सड़े है, हमारी आजादी तो अभी केवल एक-डेढ़ साल की ही है । स्वतन्त्र भारत तो अभी डेढ़ साल का बच्चा है । लेकिन उधर चाइना में जो लोग बड़े-बड़े जागीरदार थे, और जिन लोगों के पास बहुत धन था, उन्होंने समय को नहीं पहचाना । उसका जो परिणाम हुआ, वह सामने है । आजकल की दुनिया में क्या भला है, क्या बुरा है, उसका भी ख्याल हम न करें। लेकिन हमारा अपना भी तो पुराना इतिहास है, हमारी अपनी भी पुरानी संस्कृति है। हम धर्मपरायण, धर्मप्राण लोग परदेसी संस्कृति में जबरदस्ती घसीटे जाएँ और मजबूरन् कोई रास्ता हमें लेना पड़े, वह हमारे लिए ठीक नहीं। राजस्थान के जितने जागीरदार लोग यहाँ आए हैं और जो बाहर पड़े हैं, उन सब से इस समय मैं सच्चे हृदय से प्रार्थना करना चाहता हूँ, और आप लोगों के सच्चे सेवक की हैसियत से मैं कहना चाहता हूँ कि आप को समय की मांग को समझना चाहिए। आज हमारे मुल्क में जो पिछड़े हुए लोग हैं, उनको हम नहीं उठाएँगे, तो वे हमारी चांद पर वह बैठनेवाले हैं। ऐसा समय नहीं आने देना चाहिए । हमें उनका हाथ पकड़कर उठाना है। जो गरीब लोग आज हमारे सामने झुक जाते हैं, उनको सिखाना है कि इन्सान को इन्सान के सामने नहीं झुकना, खुदा के सामने, सिर्फ ईश्वर के सामने झुकना है। हमें उनको अपना भाई, अपना सहोदर बनाना है । तो हमारे मुल्क में जो ३३ कोटि देवता माने जाते हैं, वह सब असल में हमारे देशबासी ही हैं, उनको हमें देवता बनाना है। है । इस काम के लिए उनमें जो मनुष्यत्व है, उस पर का मैल और उसपर की अज्ञानता को निकाल कर साफ़ कर देना है । यह हम कैसे कर सकते हैं ? जब तक हमारी खुद की अज्ञानता न चली जाए, तब तक हम क्या कर सकते हैं ?