पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२७

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सलाह दी २२ भारत की एकता का निर्माण जूनागढ़ को भी डाल दिया है । जूनागढ़ को जफरुल्ला साहब ने थी कि तुम पाकिस्तान में शरीक हो जाओ। अगर वह ठीक था, तो उसका नतीजा जूनागढ़ के नवाब साहब को भोगना ही था । वह कोई जफरुल्ला साहब को तो भोगना नहीं था, उन्हें तो खाली बातें ही करनी थीं । जूनागढ़ का फैसला तो अब हो गया। उसमें अब कोई और चीज बननेवाली नहीं है। यू० एन० ओ० में जाओ, चाहे जहाँ जाओ, उससे कोई नई चीज नहीं बन सकती । वहाँ तो जो कुछ होना था, वह हो गया । अब जो जफरुल्ला साहब कहते हैं कि जूनागढ़ तो यू० एन० ओ० में जाएगा। आन काश्मीर का मामला हमारी तरफ से यू० एन० ओ० में गया। हमने तो यह इसलिए किया कि भई, इस से तो पाकिस्तान खुली लड़ाई करे तो अच्छा है। लेकिन वे खुली लड़ाई नहीं करते हैं, दूसरों की मार्फत अपने आदमियों को लड़ाई में भेजते हैं। अपने वहाँ से लड़ाई का सारा सामान और सब हथियार उन्हें देते हैं। इसके साथ ही अपने यहाँ से रास्ता भी उन्हें देते हैं। इससे तो खुल्लमखुल्ला लड़ाई करें, तो अच्छा है। इसलिए हमने सोचा कि यू० एन० ओ० के पास जाओ। जाके वहाँ से कुछ हो न हो तो और बात है। लेकिन अगर यू० एन० ओ० ने भी कुछ नहीं किया, तो इस तरह हम बैठे नहीं रह सकते । इस तरह काश्मीर का मामला अलग है और जूनागढ़ का मामला अलग । जूनागढ़ यू० एन० ओ० के पास नहीं जा सकता। जफरुल्ला साहब कहते हैं कि आपने भी तो रास्ता दिया था। मगर मैं पूछता हूँ कि हमने किस को रास्ता दिया था? हमने किसी को रास्ता नहीं दिया। जूनागढ़ के लोग अपने रास्ते से गए, जिधर वे जाना चाहते थे। हमने किसी को कोई रास्ता नहीं दिया । मने किसी को कोई चीज नहीं दी । जूनागढ़ में किसी को एक मक्खी भी नहीं मारनी पड़ी। किसी के ऊपर कोई हथियार नहीं चलाना पड़ा । फिर रह क्या गया ? यहाँ तो खुद दीवान ने आकर कहा कि मेहरबानी करके हमारी हुकूमत ले लो, हम उसे नहीं चला सकते । जूनागढ़ का नवाब तो भाग कर कराची जा बैठा । तब फिर जूनागढ़ की बात ही क्या रह गई ? सो यह चीज तो हो ही गई। उसके बाद हमने एक फैसला किया कि भई ! रियासतों में हमें एक काम करना चाहिए । हमने यह कबूल किया कि रियासत के लोग जैसा चाहें, वैसा करें। रियासतों में जो लोकमत हो, इसी प्रकार हमें करना चाहिए । . भ