पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१९८

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नागपुर विद्यापीठ १७६ क्योंकि नए भारत में सबसे पहली जरूरत होगी, चारित्र्य की ही। यदि हमारा चरित्र ठीक नहीं होगा, और यदि इस विद्यापीठ से हम चरित्र की छाप लेकर न निकले, तो जो बोझा हमारे ऊपर पड़नेवाला है, उसे हम उठा नहीं सकेंगे। आज हमारे लिए सारे एशिया में मैदान खुला पड़ा है। उस जगह पर नेतागिरी की जगह खुली है । उसे कौन ले सकता है ? यदि हिन्दुस्तान अपनी जगह संभाल ले, यदि हम लोग सच्चे दिल से सावधान हो जाएँ, तो सारे एसिया की नेतागिरी हिन्दुस्तान के पास आ सकती है । चाहे कितनी ही मुसीबतों से हम उठे हों, चाहे हमारी कितनी ही थोड़ी उम्र हो, चाहे हमारा अनुभव कितना ही थोड़ा क्यों न हो, लेकिन पुरानी जो विरासत मको मिली है, वह बहुत बड़ी है । जो हमारा लीडर था, उसने पिछले ३०, ३५ सालों से सारे हिन्दुस्तान को जो तालीम दी थी, उससे सारी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा बनी। उस चीज़ को हम संभाल लें, तो हमारा देश एशिया का नेता बन सकता है। मैं आपसे कहना चाहता कि भारत एक बहुत बड़ा मुल्क है। उसका टुकड़ा तो हो गया, तो भी जो बाकी बचा है, वह भी बहुत बड़ा है। दुनिया में कम मुल्क इतने बड़े हैं, जिसमें इतनी आबादी हो, इतनी जगह हो, और इतनी समृद्धि भरी हो। हमारे देश में जो सिद्धि भरी है, उसे हमें निकालना है। हम उसे न निकालेंगे, तो कौन निकालेगा? हमारे जो नौजवान विद्यापीठ में तालीम ले रहे हैं, यह उनका काम होगा। लेकिन उसके लिए आपको पूरे ध्यान से, अपने चित्त को एकाग्र कर एक ही स्मरण करना है, एक ही रटन रटना है, वह यह कि भारत को किस प्रकार मजबूत बनाया जाए? तभी यह चीज़ हजम हो सकती है । जिस प्रकार का हिन्दुस्तान हम बनाना चाहते हैं, उस प्रकार का हिन्दुस्तान हम तभी बना सकते हैं। लेकिन यदि यह हम समझे कि अब तो हम आजाद हो गए, इसलिए हमें सब अधिकार हड़प लेने है, उनके मोह में पड़ना है, और पदों के लालच में पड़ना है, तो उसमें हम बड़े संकटों और झगड़ों में पड़ जाएंगे। तब आजादी भी हमारे हाथ से चली जाएगी। यह चीज़ ठीक नहीं है। जिसके पास पावर ( शक्ति ) है, वह ठीक तरह से उसे चलाए, इसके लिए हमें उसके ऊपर चौकसी करना है। लेकिन उसके पास से सत्ता खींचकर हमारे पास आजाए, ऐसी कोशिश हमें नहीं करनी है। जो गलती करते हैं, उन्हें हम गलती न करने दें, उन्हें सावधान करके ठीक रास्ते पर ले आएं, लेकिन