पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१४१

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- भारत की एकताः का निर्माण न कोई मानपत्र मिला । असल में अगर किसी को भी मानपत्र देना उचित हो, तो वह उन्हीं लोगों को दिया जाना चाहिए। अगर मैं भी मानपत्र ले सकता हूँ, तो उन्हीं के नाम से ले सकता हूँ। हो, आप लोगों ने बारदोली की घटना का जिक्र किया है, उस समय तो हर मौके गान्धी जी मेरे साथ थे। मुझ पर उनकी निगरानी थी। वह देख रहे थे कि मैं किसी गलत रास्ते पर न चलूं । उनका आशीर्वाद भी मुझे प्राप्त था। हर काम में मेरा उनका साथ रहा। जब आखिरी लड़ाई हुई, जिसमें हमें करीब-करीब तीन साल लगातार अहमद- नगर के किले में रहना पड़ा, तब तक मेरे साथ हर मौके पर महादेव देसाई थे और वह गान्धी जी के सन्देश को घोल-घोल के पी गए थे। तब मुझे बहुत आसानी रहती थी और बहुत निश्चिन्तता भी रहती थी। मुझे यकीन रहता था कि मैं कोई गलती न कर पाऊँगा, क्योंकि गान्धीजी के प्रतिनिधि मेरे साथ हैं। इस तरह से मेरा काम चलता था। लेकिन जब मैं गवर्नमेंट में आया, तब तक महादेव भाई तो चले गए लेकिन गान्धी जी के साथ बात-चीत करने का समय मिलना भी कठिन हो गया था। क्योंकि मैं अपना काम छोड़ नहीं सकता था। बहुत दफा कोशिश की, लेकिन समय निकलता भी नहीं था और काम भी इस प्रकार था, जो काम हमारे लिए एकदम नया था। बहुत-सी मुसीबतें आई । ऐसा मौका आया, जब दिल्ली शहर में ऐसी हालत हो गई कि हम बड़े परेशान हो गए। दिल्ली के वे काले दिन चले गए। पर जब में उनका ख्याल करता हूँ तो यही मालूम होता है कि यदि खुदा की मेहरबानी न होती, तो हिन्दुस्तान बच नहीं सकता था। और आज अगर हम गिर नहीं गए तो उसकी वजह यही है कि ईश्वर की कृपा हम पर है । नहीं तो वह ऐसा मौका था कि हम डूब जाने वाले थे। लेकिन बच गए । अब हम सबको भी एक प्रकार का तजुर्बा हो गया है और हम समझ गए हैं कि हिन्दुस्तान हम सब का है, और हम सबको इधर ही रहना है। सब को हिन्दुस्तान के बाशिन्दे बन कर रहना है और आपस में मिल-जुल कर रहना है। आज से छः महीने पहले जब मुझसे कहा गया था कि हम आप का स्वागत करना चाहते हैं, तब मैंने कहा था कि भाई, आज तो हमारी हालत भी ऐसी नहीं है, और जब तक हैदराबाद का झगड़ा खतम नहीं हो जाता, तब तक हम मानपत्र या स्वागत के बारे में बात भी नहीं करना चाहते । जब तक हमें एक