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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ६७–७१

परन्तु—
(क) उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा, अपना पद त्याग सकेगा;
(ख) उपराष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा, अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के पारित किया हो तथा जिसे लोक सभा ने स्वीकृत किया;
किन्तु इस खंड के प्रयोजन के लिये कोई भी संकल्प तब तक प्रस्तावित न किया जायेगा जब तक कि उसे प्रस्तावित करने के अभिप्राय की सूचना कम से कम चौदह दिन पूर्व न दे दी गई हो;
(ग) उपराष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त जाने पर भी, अपने उत्तराधिकारी के पद ग्रहण तक पद धारण किये रहेगा।

उपराष्ट्रपति के
पद की रिक्तता-
पूर्ति के लिये
निर्वाचन करने का
समय तथा आकस्मिक रिक्तता-
पूर्ति के
लिये निर्वाचित व्यक्ति
की पदावधि
६८. (१) उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्तता की पूर्ति के लिये निर्वाचन अवधि समाप्ति से पूर्व ही पूर्ण कर लिया जायेगा।

(२) उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाये जाने अथवा अन्य कारण से हुई उसके पद की रिक्तता की पूर्ति के लिये निर्वाचन रिक्तता होने की तारीख के पश्चात् यथासंभव शीघ्र किया जायेगा तथा रिक्तता पूर्ति के लिये निर्वाचित व्यक्ति अनुच्छेद ६७ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि के लिये पद धारण करने का हक्कदार होगा।

 

उपराष्ट्रपति द्वारा
शपथ या प्रतिज्ञान
६९. प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति अथवा उस के द्वारा उस लिये नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष निम्न रूप में शपथ या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपना हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्—

"मैं, अमुक. . .ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ
कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।"

अन्य आकस्मिक-
ताओं में राष्ट्रपति
के कृत्यों का
निर्वहन

७०. इस अध्याय में उपबन्धित न की हुई किसी आकस्मिकता में राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिये संसद् जैसा उचित समझे वैसा उपबन्ध बना सकेगी। राष्ट्रपति या उप-
राष्ट्रपति के
निर्वाचन से
सम्बन्धित या
संसक्त विषय

७१. (१) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संसक्त सब शंकाओं और विवादों की जाँच और विनिश्चय उच्चतमन्यायालय करेगा और उसका विनिश्चय अन्तिम होगा।

(२) यदि उच्चतमन्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया जाता है तो उस के द्वारा यथास्थिति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन में उच्चतमन्यायालय के विनिश्चय की तारीख को या से पूर्व किये गये कार्य उस घोषणा के कारण अमान्य न हो जायेंगे।