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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ५८–६१.

(२) कोई व्यक्ति जो भारत सरकार के अथवा किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी से नियंत्रित किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण किये हुए है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र न होगा।

व्याख्या.—इस खंड के प्रयोजन के लिये कोई व्यक्ति कोई लाभ का पद धारण किये हुए केवल इसी लिये नहीं समझा जायेगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति अथवा किसी राज्य का राज्यपाल[]* * * है अथवा या तो संघ का या किसी राज्य मंत्री है।

राष्ट्रपति के पद के
लिये शर्तें

५९. (१) राष्ट्रपति न तो संसद् के किसी सदन का, और न किसी राज्य के विधान मंडल के सदन का सदस्य होगा तथा यदि संसद् के किसी सदन का अथवा किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन का सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाये तो यह समझा जायेगा कि उस ने उस सदन का अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

(२) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण न करेगा।

(३) राष्ट्रपति को, बिना किराया दिये, अपने पदावासों के उपयोग का हक्क होगा तथा उसको उन उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद्-निर्मित विधि द्वारा निर्धारित किये जायें तथा जब तक उस विषय में इस प्रकार उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं, हक्क होगा।

(४) राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते उसके पद की अवधि में घटाये नहीं जायेंगे। राष्ट्रपति द्वारा
शपथ या प्रतिज्ञान

६०. प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है अथवा उसके कृत्यों का निर्वहन करता है, अपने पद ग्रहण करने से पूर्व भारत के मुख्य न्यायाधिपति अथवा उस की अनुपस्थिति में उच्चतमन्यायालय के प्राप्य अग्रतम न्यायाधीश के समक्ष निम्न रूप में शपथ या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्—

"मैं, आमुक,. . .ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ
कि में श्रद्धा पूर्वक भारत के राष्ट्रपति पद का कार्य पालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूँगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और में भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा।"

राष्ट्रपति पर
महाभियोग
लगाने की प्रक्रिया

६१. (१) संविधान के प्रतिक्रमण के लिये, जब राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो तब संसद् का कोई सदन दोषारोप करेगा।


  1. "या राजप्रमुख या उपराजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।