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भारत का संविधान

 

भाग ४—राज्य की नीति के निदेशक तत्व—अनु॰ ४३–४९

श्रमिकों के लिये
निर्वाह-मंजूरी
आदि
४३. उपयुक्त विधान या आर्थिक संघटन द्वारा, अथवा और किसी दूसरे प्रकार से राज्य कृषि के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सब श्रमिकों को काम, निर्वाह-मंजूरी, शिष्ट-जीवन-स्तर तथा अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशायें तथा सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा तथा विशेष रूप से ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक अथवा सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।

नागरिकों के लिये
एक समान व्य-
वहार-संहिता

४४. भारत के समस्त राज्य-क्षेत्र में नागरिकों के लिये राज्य एक समान व्यवहार-संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा :

बालकों के
लिये निःशुल्क
और अनिवार्य
शिक्षा का
उपबन्ध

४५. राज्य इस संविधान के आरम्भ से दस वर्ष की कालावधि के भीतर सब बालकों को चौदह वर्ष की अवस्था समाप्ति तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिये उपबन्ध करने का प्रयास करेगा।

अनुसूचित
जातियों,
आदिमजातियों
तथा अन्य दुर्बल
विभागों के शिक्षा
और अर्थ सम्बन्धी
हितों की उन्नति

४६. राज्य जनता के दुर्बलतर विभागों के, विशेषतया अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित आदिमजातियों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से उन्नति करेगा तथा सामाजिक अन्याय तथा सब प्रकारों के शोषण से उनका संरक्षण करेगा।

आहार पुष्टि-तल
और जीवन-स्तर
को ऊंचा करने
तथा सार्वजनिक
स्वास्थ्य के सुधार
करने का राज्य
का कर्त्तव्य

४७. राज्य अपने लोगों के आहारपुष्टि-तल और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों में से मानेगा तथा विशेषतया मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिये हानिकर औषधियों के औषधीय प्रयोजनों से अतिरिक्त उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।

कृषि और पशु-
पालन का संघटन

४८. राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संघटित करने का प्रयास करेगा तथा विशेषतः गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक ढोरों की नस्ल के परिरक्षण और सुधारने के लिये तथा उनके बध का प्रतिषेध करने के लिये अग्रसर होगा।


राष्ट्रीय महत्त्व के
स्मारकों, स्थानों
और चीजों का
संरक्षण

४९. [१][संसद् द्वारा निर्मित विधि के द्वारा या अधीन राष्ट्रीय महत्त्व के घोषित] कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक स्मारक, या स्थान या चीज का यथास्थिति लुंठन, विरूपण, विनाश, अपनयन, ब्ययन अथवा निर्यात से रक्षा करना राज्य का प्रभार होगा।


  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६ धारा २७ द्वारा "संसद् से विधि द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व वाले घोषित" के स्थान पर रखे गये।