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भारत का संविधान

 

भाग ३—मूल अधिकार अनु॰ ३१—३२

(२) इस अनुच्छेद में—
[१][(क) "सम्पदा" पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो कि उस या उसकी स्थानीय समतुल्य अभिव्यक्ति का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भूधृतियों से सम्बद्ध वर्त्तमान विधि में है और उसके अन्तर्गत कोई जागीर, इनाम या मुआाफी अथवा अन्य समान प्रकार का अनुदान [२][और मद्रास और [३][केरल] राज्यों में कोई जन्म में अधिकार भी होगा]
(ख) "अधिकार" पद के अन्तर्गत किसी सम्पदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उपस्वत्वधारी, अपर स्वत्वधारी भूधृतिधारी, रय्यत, अवर रय्यत या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के बारे में कोई अधिकार या विशेषाधिकार भी होंगे।]

कुछ अधिनियमों
और विनियमों का
मान्यकरण

[४][३१ अनुच्छेद ३१ क में अन्तविष्ट उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल कुछ अधिनियमों प्रभाव डाले बिना न तो नवम अनुसूची में उल्लिखित अधिनियमों और विनियमों का और विनियमों में से और न उनके उपबन्धों में से किसी की बाबत इस मान्यकरण कारण कि ऐसा अधिनियम, विनियम या उपबन्ध इस भाग के किन्हीं उपबन्धों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसको छीन लेता है या न्यून करता है यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है या कभी शून्य गया था और किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, आज्ञप्ति या आदेश के होते हुए भी उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, निरन्तर प्रवृत्त रहेगा।]
  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३१ क के खंड (१) का परन्तुक लुप्त कर दिया जाएगा; और उसके खंड (२) के उपखंड (क) के स्थान पर निम्नलिखित उपखंड रख दिया जाएगा, अर्थात्—
    (क) "सम्पदा" से ऐसी भूमि अभिप्रेत होगी जो कृषिक प्रयोजनों के लिये या, कृषि साध्य प्रयोजनों के लिए या चरागाह के लिए पट्टे पर दी गयी है या दखलकृत है और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात्—
    (१) भवनों के आस्थान और ऐसी भूमि पर अन्य निर्माण,
    (२) ऐसी भूमि पर खड़े वृक्ष,
    (३) वन भूमि और वन्य बंजर भूमि,
    (४) जलाच्छादित क्षेत्र और जल पर तैरते हुए खेत,
    (५) जंडेर और घरात स्थान,
    (६) कोई जागीर, इनाम, मुआफी या मुकर्ररी या इसी प्रकार का अन्य अनुदान, किन्तु—
    (१) किसी नगर, या नगर क्षेत्र या ग्राम आबादी में कोई भवन प्रास्थान या किसी ऐसे भवन या आस्थान से अनुलग्न कोई भूमि,
    (२) कोई भूमि जो किसी नगर या ग्राम के लिए आस्थान के रूप में दखलकृत है, या
    (३) किसी नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र या कटक या नगरक्षेत्र में या किसी भी क्षेत्र में, जिसके लिए कोई नगर रचना योजना मंजूर है, भवन निर्माण प्रयोजनों के लिये रक्षित कोई भूमि, इसके अन्तर्गत नहीं है।
  2. संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५, धारा ३ द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अन्तःस्थापित किया गया।
  3. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा "तिरुवांकुर कोचीन" के स्थान पर रखा गया।
  4. संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१, धारा ५ द्वारा अन्तःस्थापित किया गया।