भाग ३—मूल अधिकार—अनु॰ ३१–३१क
(६) राज्य की कोई विधि, जो इस संविधान के प्रारम्भ से अठारह महीने से अनधिक पहिले अधिनियमित हुई हो, ऐसे प्रारम्भ से तीन महीने के अन्दर राष्ट्रपति के समक्ष उस के प्रमाणन के लिये रखी जा सकेगी, तथा ऐसा होने पर यदि लोक अधिसूचना द्वारा राष्ट्रपति ऐसा प्रमाणन देता है तो किसी न्यायालय में उस पर इस आधार पर आपत्ति नहीं की जायेगी कि वह खंड (२) के उपबन्धों का उल्लंघन करती है अथवा भारत-शासन अधिनियम, १९३५ की धारा २९९ की उपधारा (२) के उपबन्धों का उल्लंघन कर चुकी है।
सम्पदाओं आदि के
अर्जन के लिये उप
बन्ध करने वाली
विधियों की व्यावृत्ति
[१][३१क. १ [२][(१) अनुच्छेद १३ में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी—
- (क) किसी सम्पदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वाचन या रूपभेदन के लिए, या
- (ख) किसी सम्पत्ति का प्रबन्ध या तो लोक हित में या उस सम्पत्ति का उचित प्रबन्ध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्य द्वारा मर्यादित कालावधि के लिये ले लिये जाने के लिये, या
- (ग) दो या अधिक निगमों को या तो लोक हित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबन्ध सुनिश्चित करने की दृष्टि से समामेलित करने के लिए, या
- (घ) निगमों के प्रबन्ध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबन्ध निदेशकों, निदेशकों या प्रबन्धकों के किन्हीं अधिकारों के या अंशधारियों के किन्हीं मतदान अधिकारों के निर्वाचन या रूपभेदन के लिए, या
- (ङ) किसी खनिज या खनिज तैल को खोजने या लब्ध करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनज्ञप्ति के बल पर प्रोद्भूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वाचन या रूपभेदन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पूर्व पर्यवस्त करने या प्रतिसंहृत करने के लिए,
उपबन्ध करने वाली विधि की बाबत इस कारण कि वह अनुच्छेद १४, अनुच्छेद १९ या अनुच्छेद ३१ द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसको छीनती या न्यून करती है यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है;
परन्तु जहां कि ऐसी विधि किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा निर्मित विधि है वहां जब तक कि ऐसी विधि को, राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त न हो गई हो, इस अनुच्छेद के उपबन्ध उस विधि के संबंध लागू नहीं होंगे।]