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भारत का संविधान

 

भाग ३—मूल अधिकार—अनु॰ २२–२६

(ख) किस प्रकार या प्रकारों के मामलों में कितनी अधिकतम कालावधि के लिये कोई व्यक्ति निवारक निरोध उपबन्धित करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध किया जा सकेगा; तथा
(ग) खंड (४) के उपखंड (क) के अधीन की जाने वाली जांच में मंत्रणामंडली द्वारा अनुसरणीय प्रक्रिया क्या होगी।

शोषण के विरुद्ध अधिकार

मानव के पण्य और
बलातश्रम का प्रतिषेध
२३. (१) मानव का पण्य और बेट बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य जबर्दस्ती लिया हुआ श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबन्ध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

(२) इस अनुच्छेद की किसी बात से राज्य को सार्वजनिक प्रयोजन के लिये बाध्य सेवा लागू करने में रुकावट न होगी। ऐसी सेवा लागू करने में केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इन में से किसी के आधार पर राज्य कोई विभेद नहीं करेगा। कारखानों आदि में
बच्चों को नौकर
रखने का प्रतिषेध

२४. चौदह वर्ष से कम आयु वाले किसी बालक को किसी कारखाने अथवा खान में नौकर न रखा जायेगा और न किसी दूसरी संकटमय नौकरी में लगाया जायेगा।

धर्म-स्वातंत्र्य का अधिकार

अन्तःकरण की तथा
धर्म के अबाध
मानने, आचरण
और प्रचार करने
की स्वतंत्रता
२५. (१) सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के दूसरे उपबन्धों के अधीन रहते हुए, सब व्यक्तियों की, अन्तःकरण की स्वतंत्रता का तथा धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक्क होगा।

(२) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी वर्तमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव, अथवा राज्य के लिये किसी ऐसी विधि के बनाने में रुकावट, न डालेगी जो—

(क) धार्मिक आचरण से सम्बद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक अथवा अन्य किसी प्रकार की लौकिक क्रियाओं का विनियमन अथवा निर्बन्धन करती हो;
(ख) सामाजिक कल्याण और सुधार उपबन्धित करती हो, अथवा हिन्दुओं की सार्वजनिक प्रकार की धर्म-संस्थाओं को हिन्दुओं के सब वर्गों और विभागों के लिये खोलती हो।

व्याख्या १.—कृपाण धारण करना तथा लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने का अंग समझा जायेगा।

व्याख्या २.—खंड (२) के उपखंड (ख) में हिन्दुओं के प्रति निर्देश में सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों का भी निर्देश अन्तर्गत है तथा हिन्दू धर्म-संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ भी तदनुकूल ही किया जायेगा।

धार्मिक कार्यों के
प्रबन्ध की स्वतंत्रता
२६. सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय अथवा उस के किसी विभाग को—

(क) धार्मिक और पूर्त-प्रयोजनों के लिये संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
(ख) अपने धार्मिक कार्यों सम्बन्धी विषयों का प्रबन्ध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर सम्पत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, तथा
(घ) ऐसी सम्पत्ति के विधि अनुसार प्रशासन करने का, अधिकार होगा।