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भारत का संविधान

 

भाग ३—मूल अधिकार—अनु॰ १८-१९

खिताबों का अन्त १८. (१) सेना या विद्या संबंधी उपाधि के सिवाय और कोई खिताब राज्य प्रदान नहीं करेगा।

(२) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य में कोई खिताब स्वीकार नहीं करेगा।

(३) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हए किसी विदेशी राज्य से कोई खिताब राष्ट्रपति की सम्मति के बिना स्वीकार न करेगा।

(४) राज्य के अधीन लाभ-पद या विश्वास-पद पर आसीन कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या के अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सम्मति के बिना स्वीकार न करेगा।

स्वातंत्र्य-अधिकार

[]१९. (१) सब नागरिकों को— वाक्-स्वातन्त्र्य आदि
विषयक कुछ अधि-
कारों का संरक्षण

(क) वाक्-स्वातन्त्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातन्त्र्य का,
(ख) शान्ति पूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संस्था या संघ बनाने का,
(घ) भारत राज्य-क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ङ) भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का,
(च) सम्पत्ति के अर्जन, धारण और व्ययन का, तथा
(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का, अधिकार होगा।

[][(२) खंड (१) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिये गये अधिकारों के प्रयोग पर राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में या न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई वर्तमान विधि लगाती हो वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव, अथवा वैसे निर्बन्धन लगाने वाली कोई विधि बनाने में राज्य के लिये कोई रुकावट, न डालेगी।]


  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में १४ मई, १९५४ से पांच वर्ष की कालावधि के लिये अनुच्छेद १९ निम्नलिखित रूपभेदों के अध्यधीन होगा, अर्थात्—
    (१) खंड (३) और (४) में, "अधिकार के प्रयोग पर" शब्दों के पश्चात् "राज्य की सुरक्षा या" शब्द अन्तःस्थापित किये जायेंगे,
    (२) खंड (५) में, "के अथवा किसी अनुसूचित आदिमजाति के हितों के संरक्षण के लिये" शब्दों के स्थान पर "अथवा राज्य की सुरक्षा के हितों में" शब्द रख दिये जायेंगे, और
    (३) निम्नलिखित नया खंड जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्—
    (७) खंड (२), (३), (४) और (५) में आने वाले "युक्तियुक्त निर्बन्धन" शब्दों का अर्थ ऐसे किया जायेगा कि वे ऐसे निर्बन्धन हैं जैसे कि समुचित विधान-मंडल युक्तियुक्त समझता है।"
  2. संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१, धारा ३ द्वारा मूल खंड (२) के स्थान पर (भूतलक्षी प्रभाव से) रखा गया।