पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/५५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

भाग ३
मूल अधिकार
साधारण

परिभाषा १२. यदि प्रसंग से दूसरा अर्थ अपेक्षित न हो तो इस भाग में "राज्य" के अन्तर्गत भारत की सरकार और संसद्, तथा राज्यों में से प्रत्येक की सरकार और विधानमंडल, तथा भारत राज्य-क्षेत्र के भीतर अथवा भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सब स्थानीय और अन्य प्राधिकारी, भी हैं।

मूल अधिकारों से
असंगत अथवा
उनका अल्पीकरण
करने वाली
विधियां
[१]१३. (१) इस संविधान के प्रारंभ होने से ठीक पहिले भारत राज्य-क्षेत्र में सब प्रवृत्त विधियां उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक कि वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।

(२) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनायेगा जो इस भाग द्वारा दिये अधिकारों को छीनती या न्यून करती हो और इस खंड के उल्लंघन में बनी प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।

(३) यदि प्रसंग से दूसरा अर्थ अपेक्षित न हो तो इस अनुच्छेद में—

(क) भारत राज्य-क्षेत्र में विधि के समान प्रभावी कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि अथवा प्रथा "विधि" के अन्तर्गत होगी;
(ख) भारत राज्य-क्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य क्षमताशाली प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व पारित अथवा निर्मित विधि, जो पहिले ही निरसित न हो गई हो, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशेष क्षेत्रों में प्रवर्त्तन में न भी हो, "प्रवृत्त विधियों" के अन्तर्गत होगी।

समता-अधिकार

विधिके समक्ष
समता
१४. भारत राज्य-क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जायेगा।

धर्म, मूलवंश,
जाति, लिंग या
जन्म-स्थान के
आधारपर विभेद
का प्रतिषेध
१५. (१) राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

(२) केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई नागरिक—

(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों तथा सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश के, अथवा

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद १३ में संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जायेगा मानो कि वे संविधान (जम्मू और कश्मीर को लागू होना) आदेश १९५. के प्रारंभ अर्थात् १४ मई, १९५४ के प्रति निर्देश हैं।