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परिशिष्ट
संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१
भारत के संविधान को संशोधित करने के लिये अधिनियम

(१८ जून, १९५१)

संसद् द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम१. यह अधिनियम संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

 

अनुच्छेद १५ का
संशोधन
२ संविधान के अनुच्छेद १५ में निम्नलिखित खंड जोड़ दिया जायेगा—

"(४) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद २९ के खंड (२) की किसी बात से राज्य को सामाजिक और शिक्षात्मक दृष्टि से पिछड़े हुए किन्दी नागरिक वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित आदिमजातियों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने में बाधा न होगी।"

३. (१) संविधान के अनुच्छेद १९ में—

अनुच्छेद १६ का
संशोधन और
कुछ विधियों का
मान्यकरण
(क) खंड (२) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रख दिया जायेगा और यह समझा जायेगा कि उक्त खंड सदा ही निम्नलिखित रूप में अधिनियमित रहा है, अर्थात्—

"(२) खंड (१) के उपखंड (क) की कोई बात उवत उपखंड द्वारा दिये गये अधिकारों के प्रयोग पर राज्य की सुरक्षा, विदेशी गज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण, सम्बन्धों, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों तथा न्यायालय अवमान, मानहानि या अपराध उद्दीपन के सम्बन्ध में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई वर्तमान विधि लगाती हो वहां तक उमके प्रवर्तन पर प्रभाव, अथवा वैसे निर्बन्धन लगाने वाली कोई विधि बनाने में गज्य के लिये कोई रुकावट, न डालेगी।" (ख) खंड (६) में "उक्त उपखंड की कोई बात" शब्दों से आरम्भ होने वाले और "राज्य के लिये रुकावट न डालेगी" शब्दों से ममाप्त होने वाले शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित रख दिये जायेंगे, अर्थात्—

"उक्त उपखंड की कोई बात-

(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिये आवश्यक वृत्तिक या शिल्पिक अर्हताओं से, या
(ii) राज्य के द्वारा अथवा राज्य के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन वाले निगम द्वाग कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा नागरिकों का पूर्णत: या आंशिक अपवर्जन करके या अन्यथा चलाने से, जहां तक कोई वर्तमान विधि सम्बन्ध रखती है वहां तक उसके प्रर्वतन पर प्रभाव, अथवा सम्बन्ध रखने वाली किसी विधि को बनाने में गज्य के लिये रुकावट, न डालेगी।"

(२) संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त जो विधि संविधान की इस धाग की उपधारा (१) द्वारा यथा संशोधित अनुच्छेद १९ के उपबन्धों से संगत है उसकी बाबत केवल इस कारण कि वह उक्त अनुच्छेद के खंड (१) के उपखंड (क) द्वारा प्रदत्त अधिकार को छीन लेने या न्यूनन करने वाली विधि है और उसके प्रवर्तन की व्यावृत्ति यथामूलरूपेण अधिनियमित उस अनुच्छेद के खंड (२) द्वारा नहीं की गयी थी, यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है या कभी शून्य थी।

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