पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/३८५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७१
भारत का संविधान


षष्ठ अनुसूची

१४. स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के प्रशासन की जांच करने और उस पर प्रतिवेदन देने के लिये आयोग की नियुक्ति.—(१) राज्यपाल राज्य में के स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के प्रशासन से सम्बद्ध उसके द्वारा उल्लिखित किसी विषय की, जिसके अन्तर्गत इस अनुसूची की कंडिका (१) की उपकंडिका (३) के खंड (ग), (घ), (ङ) और (च) में उल्लिखित विषय भी है, जांच करने और प्रतिवेदन देने के लिये किसी समय भी आयोग नियुक्त कर सकेगा, अथवा राज्य में के स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के साधारणतया प्रशासन की और विशेषतया—

(क) ऐसे जिलों और प्रदेशों में शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं और संचार के उपबन्धों की,
(ख) ऐसे जिलों और प्रदेशों के बारे में किसी नये या विशेष विधान की आवश्यकता की , तथा
(ग) जिला और प्रादेशिक परिषदों द्वारा बनाई गई विधियों, नियमों और विनियमों के प्रशासन की,

समय समय पर जांच करने और प्रतिवेदन देने के लिये आयोग नियुक्त कर सकेगा तथा आयोग द्वारा अनुसरणीय प्रक्रिया को परिभाषित कर सकेगा।

(२) प्रत्येक ऐसे आयोग के प्रतिवेदन को राज्यपाल की तद्विषयक सिपारिशों के साथ सम्बन्धित मंत्री उस पर आसाम सरकार द्वारा की जाने वाली प्रस्थापित कार्यवाही के बारे में व्याख्यात्मक ज्ञापन के साथ राज्य के विधानमंडल के सामने रखेगा।

(३) शासन के कार्य को अपने मंत्रियों में बांटते समय आसाम का राज्यपाल अपने मंत्रियों में से विशेषतया एक को राज्य के स्वायत्तशामी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों के कल्याण का भार-साधक बना सकेगा।

१५. जिला या प्रादेशिक परिषदों के कार्यों और संकल्पों का रद्द या निलम्बन करना—(१) यदि किसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाये कि जिला-परिषद् या प्रादेशिक परिषद् के किसी काम या संकल्प से भारत के क्षेम का संकट में पड़ना संभाव्य है तो वह ऐसे काम या संकल्प को रद्द या निलम्बिन कर सकेगा तथा ऐसी कार्यवाही (जिसके अन्तर्गत परिषद् का निलम्बन और परिषद् में निहित या उस मे प्रयोक्तव्य शक्तियों में से सब या किन्ही को अपने हाथ में ले लेना भी है) कर सकेगा जैसी वह ऐसे काम का किये जाने से या चालू रखे जाने से अथवा एसे संकल्प को प्रभावी किये जाने से रोकने के लिये आवश्यक समझे।

(२) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन राज्यपाल द्वारा दिये गये आदेश को, उगके कारणों सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष यथासम्भव शीघ्र रखा जायेगा तथा, यदि आदेश विधानमंडल द्वारा प्रतिसंहृत न कर दिया गया हो तो वह उस प्रकार दिये जाने की तारीख से बारह मास की कालावधि तक प्रवृत्त रहेगा:

परंतु यदि, और जितनी बार, राज्य के विधानमंडल द्वारा ऐसे आदेश के चालू रखने के लिये अनुमोदन का संकल्प पारित होता है तो आदेश, यदि राज्यपाल द्वारा प्रतिसंहृत न कर दिया गया हो तो, उस तारीख से बारह मास की और कालावधि के लिये प्रवृत्त रहेगा जिस तारीख को कि इस कंडिका के अधीन वह अन्यथा प्रवतनशून्य होता।

१६. जिला या प्रादेशिक परिषद् का विघटन.--इस अनुसूची की कंडिका १४ के अधीन नियुक्त आयोग की सिपारिश पर राज्यपाल लोक-अधिसूचना द्वारा किसी प्रादेशिक या जिला-परिषद् का विघटन कर सकेगा, तथा-

(क) परिषद् के पुनर्गठन के लिये तुरन्त ही नया साधारण निर्वाचन करने के लिये निदेश दे सकेगा, अथवा