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भारत का संविधान

 

भाग २१—अस्थायी तथा अन्तर्कालीन उपबन्ध—अनु॰ ३७१-३७२

(२) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति मुम्बई राज्य के सम्बन्ध में किये गये आदेश द्वारा—

(क) विदर्भ, मराठवाड़ा, शेष महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, कच्छ और शेष गुजरात के लिए पृथक् विकास मंडलियों की इस उपबन्ध के सहित, कि इन मंडलियों में से प्रत्येक के कार्यचालन पर एक प्रतिवेदन राज्य-विधान सभा के समक्ष प्रति वर्ष रखा जाएगा, स्थापना के लिए,
(ख) सारे राज्य की अपेक्षाओं के अधीन रहते हुए उक्त क्षेत्रों पर विकाग व्यय के लिए विधियों के साम्यपूर्ण बटवारे के लिए और
(ग) सारे राज्य की अपेक्षाओं के अधीन रहते हुए सब उक्त क्षेत्रों के सम्बन्ध में शिल्पिक शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाएं और राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन सेवाओं में नौकरी के लिये पर्याप्त अवसर उपबन्धित करने वाले युक्तिपूर्ण प्रबन्ध के लिए,राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबन्ध कर सकेगा

वर्तमान विधियों का
प्रवृत बने रहना
तथा उन का अनुकूलन
[१]३७२. (१) अनुच्छेद ३९५ में निर्दिष्ट अधिनियमितियों का निरसन होने पर भी किन्तु इस संविधान के अन्य उपबन्धों के अधीन रहत हुए इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत राज्य-क्षेत्र में सब प्रवृत्त विधि उस में तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक कि सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा बदली, या निरासित या संशोधित न की जाये।

(२) भारत राज्य-क्षेत्र में किसी प्रवृत्त विधि के उपबन्धों को इस संविधान के उपबन्धों में संगत करने के प्रयोजन में राष्ट्रपति आदेश[२] द्वारा ऐसी विधि के ऐसे अनुकूलन और रूपभेद चाहे निरसन या चाहे संशोधन द्वारा कर सकेगा जैसे कि आवश्यक या इष्टकर हों तथा उपबन्ध कर सकेगा कि वह विधि ऐसी तारीख से लेकर, जैसी कि आदेश में उल्लिखित हो, ऐसे किये गये अनुकूलनों और रूपभेदों के अधीन रह कर ही प्रभावी होगी तथा ऐसे किसी अनुकूलन या रूपभेद पर किसी न्यायलय में आपति न की जायेगी।


  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३७२ में—
    (२) खंड (२) और (३) लुप्त कर दिये जायेंगे।
    (२) भारत के राज्य-क्षेत्र में प्रवृत्त विधियों के प्रति निर्देशों के अन्तर्गत हिदायतों ऐलानों, इश्तिहारों, परिपत्रों, रोबकारों, इरशादों याददास्तों राज्य-सभा राज्य-क्षेत्र में विधि का बल संविधान सभा के संकल्पों और जम्मू और कश्मीर राज्य के राज्य-क्षेत्र में विधि का बल रखने वाली अन्य लिखतों के प्रति निर्देश भी होगे; और
    (३) संविधान के प्रारम्भ के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जायेगा मानो कि वे संविधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदेश १९५४ के प्रारम्भ अर्थात् १४ मई, १९५४ के प्रति निर्देश हैं।
  2. देखिए, अधिसूचना संख्या एस॰ आर॰ ओप॰ ११५ तारीख ५ जून १९५० भारत का आसाधारण सूचनापत्र भाग २ अनुभाग ३ पृष्ठ ५१ द्वारा यथा संशोधित विधियों का अनुकूलन आदेश १९५० तारीख २६ जनवरी, १९५० भारत का असाधारण सूचनापत्र पृष्ठ ४४९, अधिसूचना संख्या एस॰ आर॰ ओ॰ ८७० तारीख ४ नवम्बर, १९५० भारत का असाधारण सूचनापत्र भाग २ अनुभाग ३ पृष्ठ ९०३ अधिसूचना संख्या एस॰ आर॰ ओ॰ ५०८ तारीख १९५१, भारत का असाधारण सूचनापत्र भाग २ अनुभाग ३ पृष्ठ २८७ और अधिसूचना संख्या एस॰ आर॰ ओ॰ ११४० बी, तारीख २ जुलाई, १९५२ भारत का असाधारण सूचनापत्र भाग २ अनुभाग ३ पृष्ठ ६१९।