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भारत का संविधान

 

भाग १६—कतिपय वर्गों से सम्बद्ध विशेष उपबन्ध—
अनु॰ ३३२—३३५

(४) आसाम राज्य की विधान-सभा में किसी स्वायत्तशासी जिले के लिये रक्षित स्थानों की संख्या का उस सभा में स्थानों की समस्त संख्या से अनुपात उस अनुपात से कम न होगा जो कि उस जिले की जनसंख्या का उस राज्य की समस्त जनसंख्या से है।

(५) शिलौंग के कटक और नगर-क्षेत्र से मिल कर बने हुए निर्वाचन-क्षेत्र को छोड़ कर आसाम राज्य के किसी स्वायत्तशासी जिले के लिये रक्षित स्थानों के निर्वाचन-क्षेत्रों में उस जिले के बाहर का कोई क्षेत्र समाविष्ट न होगा।

(६) कोई व्यक्ति, जो आसाम राज्य के किसी स्वायत्तशासी जिले में की अनसूचित आदिमजाति का सदस्य नहीं है, उस राज्य की विधान-सभा के लिये शिलौंग के कटक और नगर-क्षेत्र से मिल कर बने हुए निर्वाचन-क्षेत्र को छोड़ कर उस जिले के किसी निर्वाचन-क्षेत्र से निर्वाचित होने का पात्र न होगा।

राज्यों की विधान-
सभाओं में आंग्ल-
भारतीय समुदाय
का प्रतिनिधित्व
[]३३३. अनुच्छेद १७० में किसी बात के होते हुए भी यदि किसी राज्य के राज्यपाल []* * की राय हो कि उस राज्य की विधान-सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व आवश्यक है और पर्याप्त नहीं है तो उस विधान-सभा में उस समुदाय के जितने सदस्य वह समुचित समझे नाम-निर्देशित कर सकेगा।

 

स्थानों का रक्षण
और विशेष
प्रतिनिधित्व
संविधान के प्रारम्भ
से दस वर्ष के
पश्चात् न रहेगा
[]३३४. इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी—

(क) लोक-सभा में और राज्यों की विधान-सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित आदिमजातियों के लिये स्थानों के रक्षण सम्बन्धी, तथा
(ख) लोक-सभा में और राज्यों की विधान-सभाओं में नाम-निर्देशन द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व सम्बन्धी,

इस संविधान के उपबन्ध, इस संविधान के प्रारम्भ से दस वर्ष की कालावधि की समाप्ति पर प्रभावी न रहेंगे :

परन्तु इस अनुच्छेद की किसी बात से लोक-सभा के या राज्य की विधानसभा के किसी प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव न होगा जब तक कि यथास्थिति उस समय विद्यमान लोक-सभा या विधान-सभा का विघटन न हो जाये।

सेवाओं और पदों
के लिये अनुसूचित
जातियों और
अनुसूचित आदिम-
जातियों के दावे
[]३३५. संघ या राज्य के कार्यों से संसक्त सेवाओं और पदों के लिये नियुक्तियां करने में प्रशासन कार्यपटुता बनाये रखने की संगति के अनुसार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित आदिमजातियों के सदस्यों के दावों का ध्यान रखा जायेगा।

 

  1. अनुच्छेद ३३३ जम्मू और काश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  2. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  3. ३.० ३.१ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३३४ और ३३५ में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जाएगा मानो कि उनके अन्तर्गत जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।,