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भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ १८५—१८८

जब उस के पद से
हटाने का संकल्प
विचाराधीन हो
तब सभापति या
उपसभापति
पीठासीन न होगा
१८५. (१) विधान-परिषद् की किसी बैठक में, जब सभापति को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो तब सभापति, अथवा जब उपसभापति को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन न होगा तथा अनुच्छेद १८४ के खंड (२) के उपबन्ध उसी रूप में प्रत्येक ऐसी बैठक के सम्बन्ध में लागू होंगे जिसमें कि वे उस बैठक के सम्बन्ध में लागू होते हैं जिससे कि यथास्थिति सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।

(२) जब कि सभापति को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विधान-परिषद् में विचाराधीन हो तब उस को परिषद् में बोलने तथा दूसरे प्रकार से उस की कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा तथा, अनुच्छेद १८९ में किसी बात के होते हए भी, ऐसे संकल्प पर अथवा ऐसी कार्यवाहियों में किसी अन्य विषय पर प्रथमतः ही मत देने का हक्क होगा किन्तु मत साम्य की दशा में न होगा।

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
तथा सभापति और
उपसभापति के
वेतन और भत्ते
१८६. विधान-सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को, ऐसे वेतन और भत्ते, जैसे क्रमशः राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा नियत करे, तथा जब तक उस लिये उपबन्ध इस प्रकार न बने तब तक ऐसे वेतन और भत्ते, जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं, दिये जायेंगे।

 

राज्य के
विधानमंडल का
सचिवालय
१८७. (१) राज्य के विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन का पृथक साचविक कर्मचारी-वृन्द होगा :

परन्तु विधान-परिषद् वाले राज्य के विधानमंडल के बारे में इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं किया जायेगा कि वह ऐसे विधानमंडल के दोनों सदनों के लिये सम्मिलित पदों के सृजन को रोकती है।

(२) राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा राज्य के विधानमंडल के सदन या सदनों के साचविक कर्मचारी-वृन्द में भरती का, तथा नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का, विनियमन कर सकेगा।

(३) खंड (२) के अधीन जब तक राज्य का विधानमंडल उपबन्ध नहीं करता तब तक राज्यपाल यथास्थिति विधान-सभा के अध्यक्ष से, या विधान-परिषद् के सभापति से, परामर्श कर के सभा या परिषद् के साचविक कर्मचारी-वृन्द में भर्ती के तथा नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के, विनियमन के लिये नियमों को बना सकेगा तथा इस प्रकार के बने कोई नियम उक्त खंड के अधीन बनी किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रह कर ही प्रभावी होंगे।

कार्य-संचालन

सदस्यों द्वारा शपथ
या प्रतिज्ञान
१८८. राज्य की विधान-सभा अथवा विधान-परिषद् का प्रत्येक सदस्य, अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व, राज्यपाल के अथवा उस के द्वारा उस लिये नियुक्त व्यक्ति के सम, तृतीय अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये हुए प्रपत्र के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा तथा उस पर हस्ताक्षर करेगा।