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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १०५–१०८

(३) अन्य बातों में संसद् के प्रत्येक सदन की तथा प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ ऐसी होंगी, जैसी संसद्, समय समय पर, विधि द्वारा परिभाषित करे, तथा जब तक इस प्रकार परिभाषित नहीं की जातीं, तब तक वे ही होंगी जो इस संविधान के प्रारम्भ पर इंग्लिस्तान की पार्लियामेंट के हाउस आफ कामन्स की तथा उसके सदस्यों और समितियों की हैं।

(४) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद् के किसी सदन अथवा उसकी किसी समिति में बोलने का, अथवा अन्य प्रकार से उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार है उनके सम्बन्ध में खंड (१), (२) और (३) के उपबन्ध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद् के सदस्यों के सम्बन्ध में लागू हैं। सदस्यों के वेतन
और भत्ते

१०६. संसद् के प्रत्येक सदन के सदस्यों को ऐसे वेतनों और भत्तों को, जिन्हें संसद्, विधि द्वारा, समय समय पर निर्धारित करे, तथा जब तक तद्विषयक उपबन्ध इस प्रकार नहीं बनाया जाता तब तक ऐसे भत्तों को, ऐसी दरों से और ऐसी शर्तों पर, जैसी कि भारत डोमीनियन की संविधान सभा के सदस्यों को इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले लागू थीं, पाने का हक्क होगा।

विधान प्रक्रिया

विधेयकों के पुर:-
स्थापन और
पारण विषयक
उपबन्ध

१०७ (१) धन विधेयकों तथा अन्य वित्तीय विधेयकों के विषय में अनुच्छेद १०६ और ११७ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए कोई विधेयक संसद् के किसी सदन में आरम्भ हो सकेगा।

(२) अनुच्छेद १०८ और १०९ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए कोई विधेयक संसद् के सदनों द्वारा तब तक पारित न समझा जायेगा जब तक कि, या तो बिना संशोधन के या केवल ऐसे संशोधनों के सहित, जो दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत कर लिये गये हैं, दोनों सदनों द्वारा वह स्वीकृत न कर लिया गया हो।

(३) संसद् में लम्बित विधेयक सदनों के सत्तावसान के कारण व्यपगत न होगा।

(४) राज्य सभा में लम्बित विधेयक, जिसको लोक-सभा ने पारित नहीं किया है, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत न होगा।

(५) कोई विधेयक, जो लोक-सभा में लम्बित है, अथवा जो लोक-सभा से पारित होकर राज्य सभा में लम्बित है, अनुच्छेद १०८ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, लोक-सभा के विघटन पर व्यपगत हो जायेगा।

किन्हीं अवस्थाओं
में दोनों सदनों
की संयुक्त बैठक
१०८. (१) यदि किसी विधेयक के एक सदन में पारित होने तथा दूसरे किन्हीं अवस्थाओं सदन को पहुँचाये जाने के पश्चात्—

(क) दूसरे सदन द्वारा वह विधेयक अस्वीकृत कर दिया जाता है, अथवा
(ख) विधेयक में किये जाने वाले से असहमत हो चुके हैं, अथवा
(ग) विधेयक-प्राप्ति की तारीख से, बिना इसको पारित किये, दूसरे सदन को छः मास से अधिक बीत चुके हैं,