पूर्वज-गण दर्शन करने गए । महाराज गुरू जी ही तो थे, उन्होंने फर्माया कि 'बाबू कंठा तो बहुत ही सुन्दर है ।' यह सुनना था कि आप ने चट उसे उतार कर भेंट कर दिया। इसी प्रकार एक दिन एक शाहज़ादे साहब इनसे मिलने आए । इनके चित्रों के एक एलबम का, जिसमें बादशाहों, विद्वानों आदि के चित्र संगृहीत थे, आपने देख देख कर प्रशंसा का पुल बाँध दिया । अन्त में भारतेन्दु जी ने घबड़ा कर कह दिया कि जो यह इतना पसन्द है तो आपके नजर है। बस मियाँ शाहजादे ने फर्शी सलाम बजाया और नौ दो ग्यारह हुए। यही एक वस्तु थी जिसको दे देने पर इन्हें पाश्चात्ताप हुआ था और वे पाँच सौ रुपये तक देकर उसे वापस लेना चाहते थे, पर वह नहीं मिला। काशी के कंपनी बाग में जनसाधारण को बैठने के लिये लोहे की बेंचे रखवाई थीं। मणिकार्णिका कुण्ड के चारों ओर लोहे का कठघरा अपने व्यय से इस कारण लगवाया था कि उसमें बहुधा यात्री गिर पड़ते थे। माधोराय के धरहरे के ऊपर गुमटी में छड़ नहीं लगे थे, जिससे कभी कभी ऊपर चढ़ने वाले गिर कर अपने प्राण खो देते थे। इन्हों ने दोनों धरहरे पर छड़ लगवा दिया था। इन कार्यो के लिये म्युनिस्पैलिटी ने इन्हें धन्य- वाद दिए थे। हिन्दी भाषा की जो आज दशा है वह शताधिक हिन्दी प्रेमियों के साठ सत्तर वर्ष के सतत प्रयत्न का फल है । भारतेन्दु जी के समय में जब कि उसका जीवन ही संशय में था तब पुस्तक तथा समाचार पत्रों के प्रकाशन से लाभ को क्या सम्भाव- ना की जा सकती थी। हिन्दी भाषा के केवल उद्धार ही के लिए वे कटिवद्ध हुए थे। वे द्रव्य को हानि लाभ का. विचार करने नहीं बैठे थे। हिन्दी भाषा में लोगों को रुचि पैदा करने के लिए
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