पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/७७

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पूर्वज-वारण और जिन परीक्षाओं में इन्होंने योग दिया उनमें उत्तीर्ण भी हो गये। इस प्रकार दो तीन वर्ष अंग्रेजी तथा संस्कृत का शिक्षाक्रम चलकर रुक गया। कालेज में पान खाना मना था, इसलिए तांबूलप्रेमी भारतेन्दु जो रामकटोरा के तालाब में कुल्ला कर लास में जाते थे। उस छात्रावस्था में भी कविता का शौक था और उस समय की रचनाएँ प्रायः सभी श्रृंगार रस की थीं। सं० १९२० के अगहन महीने में भारतेन्दु जी का विवाह शिवाले के रईस लाला गुलाबराय की पुत्री श्रीमती मनोदेवी से बड़े समारोह के साथ हुआ था। यह भारत की प्रायः बीस पचोस भाषा जानते थे और उनको इन्होंने किस प्रकार सीखा था इसका एक नमूना यह है कि 'ग्यारह वर्ष की अवस्था में हम जगन्नाथ जी गए थे। मागे में वर्द्धमान में विधवाविवाह नाटक बंग भाषा में मोल लिया, सा अटकल ही से उसको पढ़ लिया।' यह स्वभाव ही से हठी, चंचल तथा क्रोधी थे। माता की मृत्यु पर इनके लालन पालन का भार इनकी एक दाई काली- कदमा और एक नौकर तिलकधारी पर था। मुड़ेरों, तथा वृक्षों, चलती गाड़ियों पर चढ़ने कूदने का ऐसा शौक था कि अपने प्राण को भी परवाह न करते । एक बार पंचकोशी करते हुए कँदवा से जो दौड़े तो दो तीन कोस पर भीमचंडी पहुँचकर दम लिया। इन्हें बाल्यावस्था में दूध पीना बड़ा बुरा मालूम होता था और जब कालीकदमा इनसे दूध पीने को कहती तो आप उसने फुर्ती फुर्ती गाली देते थे कि आधी गाली पेट ही में रह जाती थी और आधी निकल पड़ती थी। ऐसा उनके उग्र क्रोध के कारण होता था पर वे इन दोनों का बराबर सम्मान करते थे। गलियों में फास्फोरस से एसे चित्र बना देते थे कि रात्रि को लोग देख कर डर जाते थे। इनके शिक्षा क्रम का प्रधान बाधक इनकी जगदीश यात्रा हुई