पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/४०२

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३६६ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द ई चार संख्या छप सकी) सब में प्रधान कविव वनसुधा थी, जो प्रथम मासिक, फिर साप्ताहिक हुई और जो उनको ख्याति की प्रधान सामग्री थी। उससे आगे नागरी में दो एक पत्र और भी छपते थे, परन्तु वह गिरती के योग्य नहीं थे। अत: प्रथम पत्र यही कहा जा सकता है। पहिले उसमें केवल कवित्तों का मंग्रह, फिर काल के सब प्रकार के ग्रंथ, फिर समाचार आदि छपने लगे। उस समय जितने अच्छे लेखक थे सभी उसमें लिखते थे, जिनमें से कई पीछे से पत्र सम्पादक हो गए और अपने अपने नए पत्र निकाल चले। बाबू हरिश्चन्द्र न केवल अनेक प्रकार के गद्य ही लिख सकते थे, किन्तु कविता भी सभी चाल की करते थे। उनके पिता उनसे भी अच्छे कवि थे, किन्तु केवल पुरानी चाल की ब्रजभाषा के ही । उनके रचित ४० ग्रंथ हैं, जिनमें उनकी प्रौढ़ कवित्व शक्ति का परिचय मिलता है। बाबू हरिचन्द्र सभी कुछ लिख सकते थे । परन्तु समाचार पत्र सम्पादक वैसा कोई फिर पाज तक न हो सका । हँसो दिल्लगी के मज़मून तो वह ऐसा लिखते थे, कि कैसा कुछ । उन्होंने हमारी भाषा में सामयिक लेख और कविता की चाल चलाई, स्वदेशानुराग उत्पन्न किया और जाती. यता का बीजारोपण किया। इस अंश में वे पर्वथा अनूठे हुए। राजा साहिब यदि कनसर्वेटिव थे, तो बाबू माहिब लिबरल। वे यदि सदैव राजा के पक्षपाती थे नो ये प्रजा के । वे यदि अपनी उन्नति को प्रधान समझते, तो ये देश और जाति की उन्नति को। इसी से उनसे और इनसे क्रमशः वैमनस्य भी बढ़ा। उन्होंने इनकी वृद्धि में बड़ो हानि की और इन्होंने उन्हें देश को पाँखों से गिरा दिया। अन्त तक इन दोनों का बैर बढ़ता हो गया और मेल न हुआ