पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. २४ भारतेंदु हरिश्चन्द्र एक अल्पवयस्क लड़का गोपीचंद भी उनके कुछ दिन बाद अकाल काल-कवलित हो गया। इससे बाबू हर्षचंद ही अन्त में उनकी सम्पूर्ण सम्पति के मालिक हुए। उस वसीयतनामे में लिखा है कि वे राजमहल तथा मुर्शिदाबाद से आए थे जहाँ उनके उद्यान और मकान आदि हैं । उसमें यह भी लिखा है कि वे जगत सेठ के यहाँ बहुत सी चल सम्पत्ति भी छोड़ आए हैं, जिसके भी ये ही दोनों उत्तराधिकारी हैं। इस वसीयतनामा के लिखने के कुछ ही दिन बाद ये लगभल अस्सी वर्ष की अवस्था में परम धाम को चले गये। बाबू फतेहचंद जी जिस समय काशी आए थे, उस समय उनकी अवस्था दस बारह बर्ष के लगभग रही होगी, इससे उनका जन्मकाल सन् १७४७ ई० के आसपास होना चाहिए। हम लोगों की जाति में कुछ वर्षों पहिले बारह तेरह वर्ष की अवस्था विवाह योग्य होने की अन्तिम सीमा मानी जाती थी। इसी से उनका जन्मकाल अनुमान किया गया है। काशी आने से प्राय: तीस वर्ष बाद, सन् १७०६ ई० में ( इशाबान १२०३ हिजरी ) चौखम्भा वाला मकान सेठ गोकुलचंद के पुत्र गोविन्दचंद से क्रय किया गया था और बैनामे में क्रेता का नाम बा० फतेह चंद वल्द अमीनचंद बिन गिरिधारीलाल दिया है। एक दूसरी जायदाद के खरीद का एक कागज सन् १८११ ई० का जो बाबू हर्षचंद के नाम से है, जिससे ज्ञात होता है कि बाबू फतेहचंद इसके पूर्व गत हो चुके थे। बा० हर्षचंद के बाल्यकाल ही में उनके पिता पंचत्व को प्राप्त हुए थे और उसके बाद रायचंद तथा उनके पुत्र की मृत्यु पर लोगों के उभाड़ने से वे अपने पितृव्य राय रत्नचंद्र बहादुर से लड़ पड़े थे। परन्तु स्वार्थी पुरुषों की धूर्तता को समझते ही वे अपने पूज्य पितृव्य के पैरों पर जा गिरे