पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३४

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पूर्वज-गण २१ ने डाली थी पार्लियामेंट ने भी कानून पास कर १०००० पाउंड सहायता दी। सन् १९०७ ई० की रिपोर्ट में इसके मददगारों अर्थात् चन्दा देनेवालों में एक दानी का नाम अंग्रेजी में यों लिखा है-कलकत्ते के एक काले व्यापारी अमीचंद ने सन् १७६२ ई० में १८७५० रु० सहायता दी थी। (सरस्वती भाग ६, स० १६०८, पृष्ठ ५००-४)। पं० प्यारेलाल मिश्र बार एट-लाँ ने उक्त संस्था के मन्त्री से लिखा-पढ़ी की और अन्त में यह निश्चय हुआ कि आगे से रिपोर्टों में यह लिखा जाय कि 'कलकत्ते के एक भारतीय व्यापारी मिस्टर अमीचंद ने १८७५० रु० दान दिया था। सेठ अमीनचंद के पुत्र बा० फतेहचंद इस घटना से अत्यंत उदास हो गए और अपने पिता की मृत्यु हो जाने पर सन् १७५६ ई० में काशी चले आए। काशी के एक अत्यंत प्रसिद्ध नगर-सेठ गोकुलचंद जी की कन्या से इनका विवाह हुआ, सेठ गोकुलचंद के पूर्वज ने, स्यात् उनके पिता ही रहे हों, अन्य नगर-सेठों तथा सर्दारों का साथ देकर काशी के वर्तमान राजवंश को यह राज्य दिलाने में बहुत उद्योग किया था, जिस कारण वे उस राज्य के महाजन नियुक्त हुए थे और उन्होंने प्रतिष्ठा-पूर्ण नौ-पति की पदवी प्राप्त की थी। इस वंश में काशी के अग्रवालो की चौधराहट भी थी! काशी के राजवंश के मूलपुरुष मनसाराम को सन् १७३८ ई० के लगभग काशी की ज़मींदारी तथा राजा की पदवी दिल्ली के सम्राट मुहम्मदशाह से मिली थी। इसके अनन्तर बुर्हानुलमुल्क नवाब सआदत खाँ के अवध में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर बनारस भी उसी राज्य के अधीनस्थ हो गया। इसी समय जिन नौ महाजनों ने राजा मनसाराम की सब प्रकार से सहायता दी बाबू फतेहचंद