पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२८८

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- समकक्ष मानते हुए कहा है- चरित्र-चित्रण] २८१ भगवान से हाथ जोड़कर मनाती थी कि भगवान् मैं उस निर्दयी को चाहूँ पर वह मुझे न चाहे, हा! वह स्वयं चिरकाल तक विरह कष्ट सहन करने को तैयार हैं पर यह नहीं चाहती कि उसका प्रिय भी उससे वैसा ही प्रेम कर विरह की यातना भोगे । उसने स्वयं कितना कष्ट उठाया होगा यह उसके दो एक दिन के प्रलाप ही से समझ लीजिए । 'प्रेमियों के मंडल को पवित्र करनेवाली' श्री चन्द्रा- वली जी के इसी चरित्र पर भक्त कवियों ने इन्हें श्री राधिका जी के राधा चंद्रावली कृष्ण व्रज यमुना गिरिवर मुखहि कहौ री। जनम जनम यह कठिन प्रेम व्रत हरीचन्द्र इक रस निवहौ री॥ भारत दुर्दशा में 'भारतदुर्दैव' पात्र प्रधान है और इसी ने भारत के नाश करने का पूरा प्रयत्न किया है। भारत की दुर्दशा का इतिहास भारत के परतंत्र होने के समय से प्रारम्भ होता है। मुसल्मानों के आक्रमणों से भारत का स्वातंत्र्य क्रमशः नष्ट हो चला था कि भारतीयों ने उसे पुन: अपनाना प्रारम्भ कर दिया पर उसी प्रयास-काल में यूरोपियन क्रिस्तानी जातियों ने व्यापार की आड़ में यहाँ आकर उसे पुनः परतंत्र कर दिया । यही कारण है कि भारतदुर्दैव को अद्धं क्रिस्तानी तथा अर्ध मुसल्मानी वेष दिया गया है। इस पात्र का चित्रण अतीव सुन्दर हुआ है और इससे देश की तत्कालीन दशा का पूरा ज्ञान हो जाता है। इसका प्रतिनायक 'भारत भाग्य' है । छठे अंक में उसने पहुँच कर भारत के प्राचीन गौरव का, वर्तमान समय की उसकी दुर्दशा का और उन्नति करने में भारतीयों की पंगुता का बड़ो ओजस्विनी भाषा में वर्णन किया है। इस प्रतिनायक ने देशवासियों को जगाने का बहुत प्रयत्न किया पर जब वे न जागे तब उसने नैराश्य में आकर "आत्महत्या कर ली। आशावादी कह सकते हैं कि 'भारतोदय करने