पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चरित्र-चित्रण] २७३ जिन नाटक कंपनियों के लिए लिखे जाते थे उनका व्यवसाय पैसे कमाना था तथा वे साहित्यिक दृष्टि से नहीं लिखे जाते थे। ऐसी नाटक कंपनियाँ आज भी हैं, जो वस्त्रभूषा, दृश्य, पटपरिवर्तन, नर्तकियों श्रादि की बाहरी चमक दमक से दर्शकों को आकर्षित करना ही अपना धर्म समझते हैं। चरित्र-चित्रण नाट्यशास्त्र ज्ञान की चर्चा के अनंतर चरित्र-चित्रण की उच्च- तर कला की ओर आइए, जिसमें मनुष्यों के मनोविकारों तथा उच्चतम भावों का समावेश कर कवि या नाटककार आदर्शचित्र अंकित करते हैं। साधारण पात्रों में ऐसे विकारादि की क्षणिक अभिव्यंजना ही काफी हो सकती है पर प्रधान पात्रों में इन सब को अथ से इति तक अनेक अवसर लाकर अभिव्यक्त करते रहना आवश्यक होता है। इसी कारण नाटककार को मानव- जीवन के सभी अंगों का, विशेषतः जिनको वह चित्रित कर रहा हो, पूरा ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए, नहीं तो वह अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता। साथ ही उस ज्ञान का कुशल शिल्पी ही इस प्रकार उपयोग कर सकता है, जिससे उसके चित्र सजीव हो उठते हैं । भारतेन्दु जी ऐसे ही कुशल नाटककार थे और उनके मौलिक नाटकों के कुछ पात्रों का ऐसा ही चित्रण हुआ है। सत्यहरिश्चन्द्र नाटक में राजा हरिश्चन्द्र तथा विश्वामित्र प्रधान पात्र हैं, और रानी शैव्या, इन्द्र, नारद गौण पात्र हैं। पहिले वीरवर सम्राट हरिश्चन्द्र को लीजिए । इनका व्रत था- चन्द्र टरै सूरज टरै टरै जगत व्यवहार । पै हद श्री हरिचन्द्र को टरै न सत्य विचार ।। si