पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२५

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१२. भारतेंदु हरिश्चन्द्र से चलकर बजबज के पास पहुँची। यहाँ से क्लाइब ने सैनिकों के साथ बजबज दुर्ग लेने को प्रस्थान किया, पर मानिक- चंद के आ जाने पर उसे लौट जाना पड़ा। ऐसा होने पर भी मानिकचंद बजबज छोड़कर लौट गए। इसके अनंतर कलकत्ते पर भी दो घंटे की अग्निवर्षा होने पर अधिकार हो गया। हुगली नगर कलकत्ते से १३ कोस उत्तर था, उस पर भी धावा कर अंग्रेजों ने उस लूट लिया। ठीक लूट के समय ही समाचार मिला कि इंगलैंड और फ्रांस के बीच युद्ध छिड़ गया है । तब क्लाइव ने घबड़ा कर जगत सेठ को लिखा कि वे नवाब से प्रार्थना कर संधि करा दें। नवाब हुगली के लूटे जाने के कारण बहुत क्रुद्ध होकर ससैन्य कलकत्ते जाने की तैयारी कर रहा था, इससे सन्धि का अवसर न देख कर जगत सेठ ने अपने एक दक्ष कर्मचारी रंजीतराय को सेना के साथ कर दिया। अमीनचंद भी सेना के साथ गए। इस प्रकार नवाब की सेना में अंग्रेजों के दो हितैषी भी थे। नवाब ने कलकत्ते पहुँच कर अमीनचन्द के बारा में, जो मराठा डिच के भीतर कलकत्ते के उत्तर-पूर्व के भाग में था, दरबार किया। वहीं रंजीतराय वॉल्श और स्क्राफ्टन नाम के दो अंग्रेज़ प्रतिनिधियों को दीवानराय दुर्लभ के सामने लाया। उसने जाँच कर तब दरबार में पेश किया । नवाब ने उनकी बातें सुन कर दीवान से सब बातों को निश्चित करने की आज्ञा दी और स्वयं दरबार से उठ गए । अमीनचंद ने गुप्त रूप से इन प्रतिनिधियों को सतर्क कर दिया कि वे अपनी रक्षा करें। वे यह सुन कर रातों रात अपने कैंप को भाग गए। क्लाइव ने यह समाचार पाकर लड़ने की ठानी और रात्रि ही में सेना सहित अमीनचंद के बाग की ओर बढ़ा। कुछ युद्ध होने के अनंतर एक सौ