पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. २३४ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र वर्णन है। इन सब के सिवा छोटे-छोटे बहुत से लेख लिखे हैं, जिनका अब तब कोई संग्रह नहीं हुआ है । ये इनके प्रकाशित पत्रों की पुरानी फाइलों में बंद पड़े हुए हैं । इसके अतिरिक्त भारतेन्दु जी ने अन्य लोगों के कितने ग्रंथ भी सम्पादित करके प्रकाशित किए थे, जिनमें 'हठी' कवि कृत 'श्रीराधासुधा-शतक', घनानन्द कृत 'सुजान शतक', रत्नह- रिदास कृत 'कौशलेस कवितावली', संतोष सिंह कृत 'कवि-हृदय सुधाकर' आदि मुख्य हैं। अपने पिता बा० गोपालचन्द्र जी की कई रचनाएँ भी इन्होंने संपादित कर छपवाई थीं। सुन्दरी- तिलक सवैयों का एक अनूठा संग्रह इन्होंने संकलित किया था। इसे कुछ लोगों ने उसी समय इनका बिना नाम दिए ही प्रका- शित कर लिया था। इस संग्रह का आधुनिक संस्करण बहुत बड़ा हो गया है। श्री काशिराज के आज्ञानुसार काष्ठजिह्वा स्वामी के पदों के कजली मलार-संग्रह तथा चैती घांटो संग्रह छापे थे । पावस कविता संग्रह में उसी ऋतु की कविता संगृहीत इतिहास भारतवर्ष सदा से इस लोक के परे परलोक की ओर ही विशेष दृष्टि रखता था और यही कारण है कि उसके प्राचीन साहित्य में धार्मिक ग्रंथों का जितना आधिक्य है उतना अन्य विषयों के ग्रंथों का नहीं है। इसी निवृत्ति-मार्ग के ग्रहण करने के कारण पुराणों ने, जो वास्तव में इतिहास ग्रंथ हैं, धार्मिक रूप धारण कर लिया है और इनके पढ़ने का फल भूतकाल के इतिहास का ज्ञान न रह कर मोक्षप्राप्ति का साधन समझ लिया गया है । संस्कृत साहित्य के इतिहास में विक्रम शाका के चलने